जरायम और अंडरवर्ल्ड का नाम आते ही मन में पूर्वी उत्तर प्रदेश की तस्वीर बरबस ही कौंधने लगती है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ ऐसे इलाके हैं जहां से इस दुनिया की जड़ें पैदा हुई हैं फिर चाहे वह अबू सलेम हो या फिर मुन्ना बजरंगी. आज हम आपको मौत के सौदागर मुन्ना के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं. कल देर रात बागपत जेल में उसकी गोली मारकर ह्त्या कर दी गई है.
- मुन्ना बजरंगी का बचपन
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक गाँव है जिसका नाम है पूरे दयाल. साल 1967 में जन्मे मुन्ना के बचपन का नाम प्रेम प्रकाश सिंह था. उसके पिता उसे अच्छी तालीम देकर बड़ा अफसर बनाना चाहते थे. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. प्रेम प्रकाश ने अपने गाँव की प्राइमरी से 5वीं की पढ़ाई करने के बाद स्कूल जाना बंद कर दिया था. उसके शौक टीवी पर दिखाई देने वाले माफियाओं और गुंडों जैसा बनने की तरफ़ जाने लगा था. वह हथियारों से दोस्ती करना चाहता था इसी शौक ने उसे जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बना दिया. वह हर स्थिति में देश का बड़ा माफिया बनना चाहता था. इसी शौक के चलते महज़ 17 साल की कम उम्र में ही उसके खिलाफ पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया.
- साल १९८४ में की थी पहली हत्या
अपराध की दुनिया में नाम कमाने के लिए मुन्ना क़त्ल जैसा संगीन अपराध भी करने लगा. लोग बताते हैं कि शुरुआत में उसे स्थानीय माफिया गजराज सिंह का संरक्षण हासिल था. गजराज सिंह के इशारे पर ही उसने साल 1984 में एक व्यापारी की गोली मारकर ह्त्या कर दी. इसके बाद तो वह खून का प्यासा ही हो गया था. इस ह्त्या के बाद उसने जौनपुर के स्थानीय बीजेपी नेता रामचंद्र सिंह की भी हत्या कर दी. इन घटनाओं ने उसे पूर्वांचल में सुर्ख़ियों में ला दिया था.
- मुख्तार अंसारी और मुन्ना का साथ
90 के दशक में मुन्ना पूर्वांचल के बाहुबली माफिया और राजनेता मुख्तार अंसारी के गिरोह में शामिल हो गया. यह गिरोह पूर्वांचल के मऊ जिले से संचालित हो रहा था, लेकिन इसका असर यूपी से लेकर बिहार तक था. मुख़्तार की बात करें तो वह बाहुबली होने के साथ राजनीति में भी सक्रिय थे और साल 1996 में विधायक भी चुने गए थे.
बजरंगी के इस गैंग में शामिल होने से मुख्तार का बाहुबली रसूख काफी बढ़ चुका था. वह ऐसा दौर था जब पूर्वांचल में कई छोटे-बड़े गिरोह सक्रिय थे और एक दूसरे की जान के प्यासे भी. ठेकेदारी में संलिप्त सभी गैंग एक दूसरे को पीछे छोड़ देना चाहते थे. मुख्तार का साथ पाते ही मुन्ना ने सरकारी ठेकों में सीधी दखल देना शुरू कर दिया था. वह मुख्तार अंसारी के इशारे पर काम कर रहा था. पूर्वांचल में सरकारी ठेकों और वसूली के एक बड़े हिस्से पर मुख्तार का कब्जा था. इसी बीच विधायक कृष्णानंद राय की सरकारी ठेकों में दखल मुख्तार को चुभने लगी थी.
- विधायक कृष्णानंद राय की ह्त्या के बाद मचा सियासी घमासान
बाहुबल और ठेकदारी प्रथा का चोली दामन का साथ रहा है. उन दिनों जब पूरे पूर्वांचल पर मुख्तार राज करता था तब ठेके के पेशे में आए कृष्णानंद राय उसे खटकने लगे. मुख्तार ने बीजेपी विधायक को रास्ते से हटाने की जिम्मेदारी मुन्ना को सौंप दी. 29 नवम्बर 2005 की सुबह जब कृष्णानंद अपने कुछ सहयोगियों के साथ लखनऊ हाईवे पर निकले तभी दिनदहाड़े मुन्ना ने उनके काफिले पर हमला बोल दिया.
हमला प्रतिबंधित एके 47 हथियार से किया गया था जिसमें विधायक के साथ चल रहे अन्य 6 लोग भी मारे गए थे. मुन्ना ने ताबड़तोड़ गोलिया चलाई थी. मारे गए लोगों के जिस्म से 50 से ज्यादा गोलियां मिली थी. इस हत्याकांड ने यूपी की सियासत में भूचाल खड़ा कर दिया था. अब वह अपराध की दुनिया का शहंशाह बन चुका था. इस घटना के बाद पुलिस ने मुन्ना पर 7 लाख रूपए का इनाम घोषित कर दिया था.
कृष्णानंद राय ह्त्या के अलावा उसपर डकैती, लूटपाट सहित फिरौती के कई मामले दर्ज थे. पुलिस के अलावा सीबीआई सहित कई सुरक्षा एजेंसियों को उसकी तलाश थी. वह मौक़ा पाते ही अपनी लोकेशन बदल देता था. लोग कहते हैं कि वह यूपी छोड़कर मुंबई चला गया तथा जहां उसकी साठगाँठ अंडरवर्ल्ड से भी हो गई थी. वह कई बार विदेश भी जा चुका था.
- नाटकीय ढंग से हुई मुन्ना की गिरफ्तारी
आखिरकार 29 अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुन्ना बजरंगी को मुंबई से नाटकीय तरीके से गिरफ्तार कर लिया. उसके ऊपर दिल्ली पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट राजबीर सिंह की ह्त्या का भी शक था. सूत्रों की मानें तो मुन्ना ने एनकाउंटर के डर से खुद को गिरफ्तार कराया था. आज उसकी बागपत जेल के भीतर गोली मारकर ह्त्या कर दी गई है.
जरायम एक ऐसी जगह होती जिसका आखिरी पड़ाव कुछ ऐसा ही होता है. जो इसमें धंसा वह दलदल में धसता ही चला गया. मुन्ना बजरंगी ही नही अपितु देश के और भी माफिया पैदा होते रहे लेकिन उनका आखिरी हश्र यही होता रहा है या तो वे पुलिस की गोली का निशाना बने या फिर आपस के द्वंद में मार दिए गए. इस हत्याकांड से जहां एक तरफ़ पूर्वांचल के लोगों में खौफ कम हुआ है तो दूसरी तरफ़ यूपी सरकार की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवालिया निशान उठने लगे है……………………….
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