बुराई पर अच्छाई की जीत हुई या नही, बुत जला देने से असत्य पर सत्य हावी हुआ इसका शायद ही कोई प्रमाण हो लेकिन जलते रावण के पुतले से चंद मीटर दूर बेगुनाहों की मौत के तांडव ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. अमृतसर के जौड़ा रेलवे फाटक के ट्रैक पर रावण दहन देखने उमड़ी हज़ारों की भीड़ जो मन में आस्था और विश्वास लिए खड़ी थी उसे ट्रैक पर आती ट्रेनों ने कुचल डाला, चारों तरफ चीख पुकार मच गई, किसी ने अपना बेटा खोया तो किसी ने अपनी बीबी, किसी ने अपनी माँ को खोया तो किसी की पूरी दुनिया ही ख़त्म हो गई.
दहन के मंच पर भाषण देने पहुंची कांग्रेस नेता नवजोत कौर सिद्धू जो नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी भी हैं हादसे के तुरंत बाद वहां से फरार हो गई. उन्होंने मृतकों के बीच जाकर उन्हें सांत्वना देना भी मुनासिब नही समझा. जिसे असमय काल के गाल में समाना था वो तो दुनिया से रुखसत हो ही गया लेकिन फिर शुरू हो गई लाशों पर सियासी जंग. देश के राष्ट्रपति, पीएम से लेकर कई बड़े नेताओं ने मृतकों के प्रति शोक संवेदना भी जताई लेकिन जिनका सबकुछ लुट गया हो उन शोक संतप्त परिवारों के लिए सहानुभूति किस काम की?
दुनिया में कई किस्म के लोग होते हैं. कुछ ऐसे भी होते हैं जिनमे मानवता नाम की कोई चीज बची ही नही होती. ट्रैक पर मौजूद कुछ लोग ऐसे भी थे जो हांथों में फोन लिए सेल्फी उतार रहे थे. इस बात से बेपरवाह कि किसी को आवाज देकर उसकी जान बचाई जा सके. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ अमृतसर रेल काण्ड में करीब 200 लोग मारे गए लेकिन सरकारी आंकड़ा महज़ 61 का दिखाया जा रहा है. घटना स्थल पर मौजूद एक व्यक्ति ने बताया कि मरने वालो में कुछ ऐसे लोग भी थे जिनका पूरा परिवार ही घटना की बलि चढ़ गया उनकी लाशों को कंधा देने वाला भी कोई नही बचा. घटना के बाद लोग अपने परिजनों को ढूढ़ने लगे. किसी का इकलौता चिराग बलि चढ़ गया तो किसी की माँ और बेटी इस हादसे का शिकार हो गई.
अमृतसर हादसे में घायल लोगों का इलाज़ नज़दीक के अस्पताल में किया जा रहा है. मृतकों के परिजनों का गुस्सा अपने चरम पर है. लोगों का रो-रोकर बुरा हाल है. कुछ आँखों के आंसू भी सूख चुके हैं. जिन्होंने अपने परिजनों को खोया है वो सरकार से नौकरी और मुवावजे की मांग कर रहे हैं जिससे उनकी आजीविका चल सके. देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सूबे के डीजीपी से फोन पर बात करके पूरे मामले पर केन्द्र से सभी जरूरी मदद का आश्वासन दिया है तो केन्द्रीय रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने भी मृतकों के परिजनों की मदद की बात की है.
रेलवे बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष हादसे वाली जगह पर पहुंचे और उन्होंने इस घटना में रेलवे की लापरवाही से इनकार करते हुए किसी भी तरह की जांच कराने से मना कर दिया है. लोहानी ने कहा कि आयोजन की अनुमति रेलवे से नही ली गई थी. जिस जगह पर भीड़ इकठ्ठा हुई थी वहां ट्रेनों की आवाजाही की गति सीमा तय नही होती लिहाजा लोगों को ट्रैक पर सावधानी से खड़ा होना चाहिए था.
देश में हादसा हो और राजनीति पीछे रह जाए ऐसा कभी हुआ ही नही. ट्रेन हादसे के बाद शुरू हो गया सियासी उठापटक. कांग्रेस नेता नवजोत सिद्धू ट्रेन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि ड्राइवर ने सीटी नही बजाई जिससे लोगों को संभलने का समय ही नही मिला. दूसरी तरफ लोको पायलट ने कहा है कि रावण दहन से निकले धुंए की वजह से ट्रैक पर उसे कुछ दिखाई ही नही दिया जिसके चलते उसे ब्रेक लगाने का समय ही नही मिला. इस पूरे हादसे में गलती किसकी थी यह तय होना चाहिए लेकिन तय करेगा कौन सवाल यही है?. जिसे हादसे की जिम्मेदारी लेने की जरूरत है वही सियासी दांव पेंच में उलझकर रह गया है. गलती रेलवे की नही, आयोजकों की नही तो फिर गलती उस भीड़ की है जो आस्था के नाम पर वहां इकठ्ठा हुई थी?
सवाल कई हैं लेकिन उसका जवाब शायद ही कभी मिल पाए. यदि अमृतसर रेलवे से बगैर मंजूरी लिए इस तरह का कार्यक्रम हो रहा था तो इसका जिम्मेदारी आयोजन समिति को लेना चाहिए लेकिन वह इससे बचती नज़र आ रही है. हादसे होते हैं तो सरकारें भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए तमाम वादे करती हैं लेकिन दुर्घटनाओं पर अंकुश नही लग पाता. अमृतसर हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों को न्याय मिलना ही चाहिए बेशक इसका जिम्मेदार कितना भी बड़ा नेता या व्यक्ति समूह ही क्यों न हो लेकिन क्या वाकई ऐसा हो पायेगा या हर बार की तरह हादसों के बाद चीत्कार करती आत्माएं अपनों के रंजो गम लिए आत्मा की शांति के लिए हज़ारों साल भटकती ही रह जाएंगी.
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