आदि काल से ही ग्रहों खासकर सूर्य और चंद्रग्रहण की कहानी ग्रंथों में रोचक रूप से परोसी जाती रही है. ज्योतिष विद्या इस घटना को लेकर काफी सजग दिखाई पड़ती है. ग्रहण लगने के साथ ही ज्योतिष और पण्डे-पुजारी जहां एक तरफ़ सावधानी बरतने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ़ यह घटना खगोलशास्त्र के लिए भी किसी रोचकता से कम नही है.
ग्रहण की इस घटना पर दोनों के बीच काफी मतभेद भी रहे हैं. खासकर हिन्दू धर्म के लिए यह विशेष महत्व रखता है.
- जानिए किस दिन होगा सदी का सबसे बड़ा चन्द्र ग्रहण
जी हाँ, आज हम बात कर रहे हैं ऐसे चंद्रग्रहण के बारे में जिसे इस सदी के लोगों ने पहले कभी नही देखा होगा. 27 जुलाई को सदी का सबसे बड़ा ग्रहण लगने वाला है. इसकी कुल अवधि 6 घंटा 14 मिनट है जिसमें करीब 103 मिनट तक पूर्ण ग्रहण की स्थिति रहने वाली है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार का ग्रहण कितना लम्बा होने वाला है.
- ज्योतिष की नज़र से इस घटना का महत्व
ज्योतिष हमेशा ही विज्ञान का आलोचक रहा है. इसके मुताबिक़ ग्रहण के वक्त घरों से बाहर नही निकलना चाहिए, जिस समय ग्रहण हो तब भोजन नही बनाना चाहिए और ना ही भोजन करना चाहिए. गर्भवती महिलाओं को सब्जी नही काटना चाहिए या फिर ग्रहण को देखना नही चाहिए नही तो उनके गर्भ में पल रहे बच्चे को भारी नुकसान हो सकता है. लोगों को खुदा की आराधना करनी चाहिए, गंगाजल से घर को पवित्र करने के साथ ही दान देने की प्रथा, ग्रहण के वक्त नहाकर पूजा-अर्चना की बात भी ज्योतिष और धार्मिक ग्रन्थ करते आए हैं.
धार्मिक ग्रंथों पर यकीन करें तो पता चलता है कि जब देवताओं और दैत्यों के बीच समुद्र मंथन हुआ तभी सागर से अमृत कलश के साथ ही कई अमूल्य रत्न भी उत्पन्न हुए थे. भगवान विष्णु ने छलपूर्वक सारा अमृत देवताओं में बांटना चाहा, तभी उन्ही देवताओं में एक दानव भी अमृतपान कर गया. अमृत पीते ही वह भी अमर हो गया. जब यह बात विष्णु को पता चली तब उन्होंने अपने चक्र से दानव का सिर धड़ से अलग कर दिया. यही दोनों धड़े बाद में चलकर राहु और केतु के नाम से जाने गए. आपने हमेशा ज्योतिषी को राहु या केतु की बात करते हुए सुना ही होगा कमोवेश यही राहु और केतु समय- समय पर सूर्य और चंद्रमा को निगलते रहते हैं जिससे ग्रहण की स्थिति उत्पन्न होती रहती है.
- चंद्रग्रहण पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण
क्या विज्ञान सूर्य तक पहुँच पाया है? जब विज्ञान था ही नही तब महाभारत के समय कुरुक्षेत्र में ग्रहण की घटना हुई थी!! कुछ ऐसा ही तर्क देकर ज्योतिषशास्त्र विज्ञान को नीचा दिखाने का काम करता आया है लेकिन आज सुपर कंप्यूटर के युग में विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है. विज्ञान ने ज्योतिष के राहु-केतु काल को हमेश ही हंसी का पात्र माना है. विज्ञान के मुताबिक़ जब चन्द्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे आता है तब ऐसी स्थति उत्पन्न हो जाती है. ज्यामिति की मानें तो यह खगोलीय घटना सिर्फ अमावस्या को ही दिखाई देता है. खगोलशास्त्र की मानें तो इस ग्रहण को आप नंगी आँखों से भी देख सकते हैं इससे आपको किसी भी प्रकार का नुकसान नही होता है.
ग्रहण चाहे चन्द्रमा का हो या फिर सूर्य का सबकी एक पौराणिक किवदंतियां रही हैं, भारत ही नही अपितु दुनिया के कई देश इन विचारों में विश्वास भी करते आए है. जापान जैसा तकनीकी समृद्ध देश भी किवदंतियों में भरोसा रखता है. पाठकों को मेरी सलाह है कि वे किसी के बहकावे में ना आवें आप अपने विचार से क्या करना है और क्या नही करना है इसके लिए स्वतंत्र हैं.
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