धर्म दुनिया की ऐसी धारणा है जिसके मायने हर किसी की ज़िंदगी में ख़ास महत्व रखते हैं. आज मुहर्रम है यह बात सरकारी आकड़ों में दर्ज राजपत्रित अवकाश की वजह से लगभग सबको जानकारी होगी लेकिन वास्तव में इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है. इस्लाम को आगे बढ़ाने के लिए हजरत इमाम हुसैन आज के ही दिन शहीद हो गए थे. इमाम हुसैन की शहादत में उनके अनुयायी आज के दिन मातम मनाते हैं.
- मुहर्रम- एक नज़र
10 सितम्बर से इस्लामिक नया साल शुरू हो गया है. यह महीना मुहर्रम का होता है. 10 सितम्बर से लेकर 9 अक्टूबर तक यह महीना चलेगा. 10वां दिन इस महीने का सबसे ख़ास दिन होता है. लोगों के मुताबिक़ इस्लामी मान्यताओं के मुताबिक़ इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह रहा करता था. वह इतना खूंखार था कि लोग उसे इंसानियत का दुश्मन समझने लगे थे.
बादशाह यजीद खुद को देश का खलीफा समझता था. उसको अल्लाह पर विश्वास नहीं था. उसकी मंशा हजरत इमाम हुसैन को अपने खेमे में शामिल करने की थी लेकिन हुसैन इंसानियत के रक्षक थे उन्हें उसका यह सौदा मंजूर नहीं था. यजीदी की बढ़ती हिंसा के बीच इंसानियत की रक्षा के लिए इमाम हुसैन ने उसके खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.
पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन युद्ध करते हुए कर्बला में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद हो गए. यह वही महीना था जब इमाम हुसैन को युद्ध के मैदान में परिवार सहित मार दिया गया था. इस्लाम की रक्षा करते हुए उनकी शहादत को इस्लाम के अनुयायी आज भी मातम के रूप में मनाते हैं.
आज के दिन इस्लाम को मानने वाले लोग सड़कों पर काले कपडे पहनकर हांथों में तलवार के साथ जुलूस निकालते हैं. कुछ तो नंगे दिखाई देते हैं जो कटार से अपने शरीर पर वार करके खुद को दर्द देकर इमाम हुसैन को याद करते हैं. मुहर्रम के 9वें और दसवें रोज इस्लामी लोग रोजे का व्रत भी रखते हैं. इस दिन मस्जिदों में इबादत भी की जाती है.
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