भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर तरह का खेल खेला जाता हैं. चाहे वो क्रिकेट, फुटबॉल, कबड्डी, हॉकी या फिर खो-खो हो. हर एक खेल को खेलने का अलग ही आनंद हैं. आप हर किसी खेल के बारे में जानते होंगे लेकिन खो-खो के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होगी पर चिंता मत कीजिए. आज का आर्टिकल आपको खो-खो के खेल की सारी जानकारी देगा.
खो-खो एक भारतीय मैदानी खेल में से एक हैं और भारत में इस खेल के संगठन का नाम भारतीय खो-खो महासंघ हैं. यह खेल लोगों की मदद से ही खेला जाता हैं इसमें न किसी भी तरह के बैट-बॉल, फुटबॉल या हॉकी की ज़रुरत नहीं होती है. खो-खो के खेल में मैदान के दोनों ओर दो खभ्भों के सिवा किसी और चीज़ की ज़रुरत नहीं होती हैं. इस खेल में दो टीम होती हैं जिसमें हर टीम में 8 से 9 खिलाड़ियों की संख्या होती हैं. दोनों टीम के लोगों में ऊर्जा, तंदुरुस्ती, चुस्ती-फुर्ती होना बेहद ज़रूरी हैं.
खो-खो को खेलने के लिए मैदान 51 फुट चौड़ा और 111 फुट लम्बा होना ज़रूरी हैं. दोनों ओर से 10-10 फुट जगह छोड़ 4-4 फूट ऊँची लकड़ी के दो बड़े-बड़े स्तंभ गाड़ दिए जाते हैं. इन दोनों स्तंभ के गैप को 8 बराबर भागों में बांट दिया जाता हैं. जिसमें एक-दूसरे के विरुद्ध दिशाओं की ओर मुँह करके खिलाड़ी अपनी-अपनी जगह पर बैठते हैं.
खो-खो के खेल में दोनों टीमों को 1-1 पारी में 7-7 मिनट दिए जाते हैं और दिए गए वक़्त में उस टीम को अपनी पारी को ख़त्म करना होता हैं. दोनों ही टीम से 1-1 खिलाड़ी खड़ा होता है और एक दूसरे के पीछे भागते हैं. विपक्षी टीम का खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंदी को चकमा देता हैं, और पकड़ने वाला खिलाड़ी अगर भागने वाले के पास आ जाए तब वह अपनी ही टीम के खिलाड़ी को खो बोलकर उस खिलाड़ी के स्थान पर बैठ जाता है और बैठा हुआ खिलाड़ी भागने लगता हैं. इस खेल में खिलाड़ी के अलावा रैफरी, अम्पायर, स्कोरर और टाइम-कीपर होते हैं जो पूरे मैच पर नज़र रखते हुए हर चीज़ की जानकारी देते हैं.
इन अधिकारी के कार्य की बात की जाए तो-
अम्पायर- अम्पायर लॉबी से बाहर खड़े होकर अपने स्थान से खेल की देख-रेख करते हैं. वह अपने तरफ से सभी निर्णय देते हैं. दूसरी तरफ के अम्पायर की भी कई बार निर्णय लेने में सहायता कर सकते है.
रैफरी का काम होता हैं-
- वह अम्पायरों की ड्यूटी में सहायता करता है साथ ही उनमें होने वाले मतभेद के कारण से कई बार वह अपना फैसला देता हैं.
- वह खेल में बाधा पहुँचाने वाले, दुष्ट व्यवहार करने वाले या नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड देने का अधिकार रखता हैं.
- वह नियमों सम्बन्धी प्रश्नों पर अपना निर्णय देता है.
टाइम-कीपर- टाइप-कीपर के नाम से इनके काम अंदाज़ा लगया जा सकता है, इनका काम समय का रिकार्ड रखना होता है. वह अपनी सीटी बजाकर पारी की शुरुवात व अंत की घोषण करता है.
स्कोरर- स्कोरर का काम इस बात का ध्यान रखना है कि खिलाड़ी का मैदान में क्या क्रम रहा है या किस क्रम से मैदान में उतरा हैं. वह आउटहुए खिलाडियों का रिकार्ड भी रखता है. साथ ही वह प्रत्येक पारी के खत्म होने के बाद वह स्कोर शीट को अपडेट करता है. मैच के अंत में वह रिजल्ट तैयार करता है और फिर रैफरी को सुनाने के लिए दे देता है.
आइए अब बात करते हैं खो-खो खेल के नियमों की-
- बैठने और दौड़ने की प्रक्रिया के लिए टॉस किया जाता हैं.
- खो-खो के खेल में यदि रनर दौड़ते हुए सीमा के बाहर चला जाए या फिर दोनों पैर सीमा के बाहर हो जाए तो वह आउट माना जाता हैं.
- बैठने वाली टीम के खिलाडियों को अलग तरह से बैठना होता हैं. खिलाड़ी नं- 1,3,5,7 का मुँह एक तरफ होगा बाकि खिलाड़ी नं- 2,4,6 का मुँह उनके विपरीत होगा.
- बैठे हुए खिलाड़ी अपनी टीम के भाग रहे खिलाड़ी के बिना खो बोलकर, उठकर भाग नहीं सकते.
- खो मिलने के बाद ही खिलाड़ी उठकर भागने के लिए अपनी दिशा तय करता हैं.
- यदि खो लेने के बाद सेंटर लाइन को पार कर देता है तो वह फाउल होता हैं.
- अगर दोनों टीम का स्कोर बराबर हो तो एक पारी और खेली जाती हैं.
- खो-खो के खेल में कभी कोई खिलाड़ी घायल हो जाए तो उसकी जगह एक्स्ट्रा में कोई खिलाड़ी उसकी जगह खेल सकता हैं.
खो-खो के खेल से शरीर में चुस्ती रहती है और साथ ही शरीर बलवान बना रहता है. इस खेल से सभी लोगों का मनोरंजन भी होता है. इस खेल के कारण लोगों में अनुशासन और मिल-जुलकर काम करने की भावना आती हैं. अपनी दिनचर्या में इस खेल को खेलने के लिए समय निकले और अपने स्वास्थ्य में आप फर्क देख सकते हैं. इसे खेलने के बाद शरीर में फूर्ति आती है साथ ही दूसरे कार्य करने की शक्ति भी बढ़ जाती. इंसान का चिड़चिड़ापन खत्म हो जाता हैं और वह खुश रहता है.
इसे भी पढ़े: भारतीय इतिहास के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी