कुश्ती पूरे विश्व में खेला जाने वाला खेल है. इस खेल को इंसानी ताकतों के दम पर खेला जाता है. इस खेल को खेलते वक़्त इंसान अपनी ताकतों का इस्तेमाल करता है. इतिहासकारों के मुताबिक कुश्ती की शुरुआत उस युग में हुआ था जब इंसान शास्त्रों के इस्तेमाल के बारे में नहीं जानते थें. उस दौर में इंसान जानवरों का शिकार करने या जानवरों से खुद को बचाने के लिए अलग-अलग दाँव-पेंचों को सीखता था और उनका प्रयोग करता था. आज हम इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि भारत में कुश्ती का इतिहास कैसा था.
कुश्ती को मल्ल युद्ध के नाम से भी जाना जाता है. मल्ल युद्द और उनके दृश्यों को मिस्र में नील नदी के तट पर स्थित बेंने-हसन की शव-समाधि की दीवारों पर भी देखा जा सकता है. इन चित्रों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 3000 इसा पूर्व ही मिस्र में मल्ल युद्ध यानि कि कुश्ती का पूर्ण विकास हो चुका था. वैसे तो कुश्ती का इतिहास मिस्र से ही नज़र आता है लेकिन कुछ लोगों कि धरना यह भी है कि भारत में कुश्ती का विकास वैदिक काल में हुआ था. लेकिन अगर भारत के साहित्य को पढ़ें तो मिलेगा कि इसमें स्वास्थ्य वर्धन और शक्तिसंचय के निमित्त, आसन, प्राणायम आदि यौगिक क्रियाओं के साथ घुड़सवारी, रथों की दौड़, शस्त्रास्त्रों के अभ्यास के उल्लेख तो है लेकिन इसमें कहीं भी कुश्ती का ज़िक्र नहीं किया गया है.
अतः यह स्पष्ट है कि कुश्ती का खेल वैदिक काल के बाद ही आया होगा. कुश्ती का इतिहास ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ की और भी ध्यान लेकर जाता है. इन अध्यात्मिक पुस्तकों में भी कुश्ती की चर्चा होते रही है. उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो रामायण में बाली-सुग्रीव और महाभारत में भीम-दुर्योधन के युद्ध को देखा जा सकता है. ऐसे युद्धों को द्वंद्वयुद्द कहा जाता है. ऐसे युद्धों की एक नैतिक संहिता होती है और उसका उलंघन करने पर उसकी नींदा की जाती है. जब श्रीकृष्ण के संकेत पर भीम ने जरासंध की संधियों को चीर दिया और दुर्योधन की जाँघ पर प्रहार किया तो उसकी की गई थी.
वेद-पुराणों कुश्ती का ज़िक्र मल्लक्रीडा के नाम से किया गया है. इससे समझ आता है कि उन दिनों इस खेल को कितना आदर और सम्मान दिया जाता था. भारत में कुश्ती का आयोजन राजा- माहाराजाओं के द्वारा किसी विशेष उत्सव या पर्व के दौरान किया जाता था. इस दौरान दुसरे राज्यों से मल्लों को निमंत्रण देकर बुलाया जाता था. मल्लक्रीडा को आरंभ करने से पहले धनुर्यज्ञ होता था जिसमें मल्लों (योद्धाओं) को अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए एक भारी धनुष की प्रत्यंचा को खींचकर चढ़ानी होती थी. कृष्ण के मामा कंस ने भी एक ऐसे ही उत्सव का आयोजन किया था ताकि वो कृष्ण और बलराम को इस उत्सव में बुलाकर उनकी हत्या कर सके. किंतु इस मल्ल युद्द के दौरान कृष्ण और बलराम ने अपने कौशल से कंस को पराजित कर दिया था. इसी तरह से जिन दिनों पांडव छद्मवेश में विराट नगरी में रह रहे थे, उन दिनों वहाँ ब्रह्मोत्सव का आयोजन हुआ था. उसमें भीम ने जीमूत नामक मल्ल को परास्त किया था.
भारत में कुश्ती और कुश्ती का इतिहास
मध्य काल में जब भारत में मुस्लिम शासकों ने कब्ज़ा किया उस दौरान भारत में संस्कृति और ज्ञान का भरपूर प्रचार हुआ इस दौरान मुस्लिम देशों की युद्ध निति के साथ भारतीय मल्लयुद्ध पद्धति का समन्वय भी हुआ. कुश्ती का इतिहास बताता है कि यह समन्वय विशेष रूप से मुग़ल काल के दौरान हुआ था. बाबर को मध्य एशिया में प्रचलित कुश्ती में महारथ प्राप्त थी. वो काफी बलशाली और हिष्ठ्पुष्ठ भी था. वहीँ अकबर भी कुश्ती का खेल भलीभांति जानता था. उसे भी इस खेल में महारथ हासिल थी. उसने कुश्ती कला उच्चकोटि के मल्लों से सीखी थी. अकबर एक समन्यवादी राजा था. उसने हिन्दू-मुस्लिम के सभी क्षेत्रों में सामंजस्य लाने का पूरा प्रयत्न किया था. फलस्वरूप कुश्ती कला भी उसके कौशल से दूर नहीं रही. भारत में कुश्ती को उसी समय से सैन्य एवं राज्य संरक्षण प्राप्त होते रही. उस दौरान कुश्ती के खिलाड़ियों को विशेष संरक्षण प्राप्त होता था.
16 वीं शताब्दी में विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय के राजदरबार में नित्य मल्ल युद्ध का प्रदर्शन होता था. तत्कालीन आलेखों के मुताबिक मराठा पेशवा परिवार के लोग भी मल्लयुद्ध प्रवीण थें. भारत में जब अंग्रेजों ने कब्ज़ा किया तब थामस ब्राउटन नामक अंग्रेज़ सैनिक अधिकारी ने दौलताराव सिंधिया के सैनिकों के बीच मल्ल युद्ध शिक्षा के प्रचार का विस्तृत वर्णन किया है. पेशवा काल में स्रियाँ भी मल्ल युद्ध में भाग लेती थीं और ये महिलाएं इस कला में इतनी प्रवीण होती थीं कि वे पुरुषों को भी चुनौती दे देती थीं. उस दौरान स्थिति ऐसी हो जाती थी कि पुरुष पराजित होने की आशंका से महिलाओं की चुनौती स्वीकार करने में संकोच करते थे.
जातक कथाओं में कुश्ती का इतिहास
हमारे जातक कथाओं में भी कुश्ती के कई उल्लेख मिलते हैं. इन कथाओं में अखाड़े, अखाड़े के सामने प्रक्षकों और दर्शकों के बैठने की जगह, उसकी सजावट, मल्लयुद्ध आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी का ज़िक्र होता है. अध्यात्मिक बौध ग्रन्थ ‘विनयपिटक’ में उल्लिखित एक प्रसंग से इस बात का ज़िक्र किया गया है कि स्त्रियाँ भी मल्ल युद्ध में भाग लेती थीं. इस ग्रंथ में शेवती नामक एक मल्ली के भिक्षुणी हो जाने का उल्लेख किया गया है. वहीँ जैन के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कल्पसूत्र’ लिखा गया है कि राजा लोग भी कुश्ती में भाग लेते थे।
कुश्ती एक ऐसी विद्या है जिसके लिए खिलाडियों को बहुत सारे त्याग करने होते हैं. आज भी कुश्ती की प्रतिश्पर्धा वाले खिलाड़ी हमारे बीच मौजूद हैं. इस खेल की शुरुआत कब और कहाँ से हुई यह कह पाना तो मुश्किल है लेकिन आज कुश्ती के खेल ने लोगों के दिलों में जो जगह बनाई है. वो शारिरिक और पारंपरिक खेलों के लिए एक मिसाल है. कई सारे अंतरराष्ट्रीय खेलों के साथ-साथ कुश्ती ने ओलंपिक में भी अपना स्थान बनाया है. कुश्ती में भारत का नाम फोगाट बहनों ने भी खूब रौशन किया है. यह खेल उन्होंने बहुत ही त्याग और परिश्रम से सिखा है.
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