एम करूणानिधि राजनीति के ऐसे स्क्रिप्ट राइटर थे जिनका जोड़ मिलना मुश्किल है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे कभी भी चुनाव के मैदान में मात नही खाए. दक्षिण भारत के सर्वमान्य नेताओं में एम करूणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रह चुके थे. वे 94 साल के थे. उनके निधन से उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ गई है. उन्होंने अपने जीवन की पटकथा अपने बूते पर लिखी थी जो बाद में चलकर करोड़ों लोगों के लिए मिशाल बन गई. उनके निधन पर देश के प्रधानमन्त्री और अन्य नेताओं के साथ फिल्म जगत के कई कलाकार अंतिम दर्शन को पहुँच रहे हैं.
- खबर पर एक नज़र
बीते 28 जुलाई को तबियत खराब होने के चलते 94 वर्षीय एम करूणानिधि को चेन्नई के कावेरी अस्पातल में भर्ती कराया गया था. उनके स्वास्थ्य को लेकर उनके चाहने वाले पूजा अर्चना तक कर रहे थे. डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नही जा सका. कल शाम अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली.
उनका जन्म तमिलनाडु के एक समृद्ध हिन्दू परिवार में हुआ था. उनका परिवार हिन्दू परम्पराओं को अच्छे से मानता था. एक घटना के चलते उनके पिता ने लोगों के सामने उनकी पिटाई की थी.
इससे क्षुब्ध होकर करूणानिधि यूपी के बनारस जा पहुंचे. एक रात जब उन्हें भूख लगी तो सामने ही नि:शुल्क चल रहे ब्रम्ह्भोज में जाकर खाने की कोशिश की. वहां पता चला कि वह भोजन सिर्फ ब्राह्मणों के लिए ही बना था उसमें कोई और खाना नही खा सकता था. तभी से उनके मन में ‘वर्ण व्यवस्था’ को लेकर नफरत फ़ैल गई.
एनडीए सरकार में जब अटल बिहारी बाजपाई देश की सत्ता के शीर्ष पर थे तब वे भी इस गठबंधन का हिस्सा रहे. उन्होंने उस समय भगवान राम पर आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए उन्हें शराबी, घुमंतू और काल्पनिक बता दिया था. उनके मुताबिक़ उत्तर भारतीय आर्य समाज द्वारा द्रविड़ों पर अत्याचार हुआ है.
आर्यों ने राम-रावण जैसे काल्पनिक किरदारों के जरिए द्रविड़ों पर घोर अत्याचार किया है. वे अपनी बात पर अडिग रहे. वे पेरियार के बेहद करीबी माने जाते थे और उनसे खासे प्रभावित भी थे. आर्यों और द्रविड़ों पर लिखी पटकथा ने ही उन्हें दक्षिण भारत का एक बड़ा राजनीतिक चेहरा बना दिया.
उनकी मौत के बाद उन्हें दफनाने के लिए भी विवाद होता रहा. डीएमके सहित देश के कई दल यह चाहते थे कि उन्हें मरीना बीच पर दफनाया जाए लेकिन मौजूदा सरकार कानूनी बंदिशों के चलते उन्हें मरीना पर जमीन देने से मना कर चुकी थी. कारण साफ़ था कि मरीना बीच पर वही दफनाया जा सकता है जो मौजूदा समय में सूबे का मुख्यमंत्री हो. हालांकि डीएमके द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका के बाद कोर्ट ने उनके पार्थिव शरीर को बीच पर उनके मेंटर रहे अन्नादुरै की कब्र के पास दफनाने की इजाजत दे दी.
हिन्दू होने के बाद भी किसी व्यक्ति को दफनाया जाना कितना विस्मृत करने वाला है. वैसे यह पहला मामला नहीं है. इससे पहले जब जयललिता को दफनाया गया था तब भी यह सवाल उठा था. आपको बताते चलें कि द्रविड़ मूवमेंट की नींव ब्राह्मणवाद के विरोध में पड़ी थी.
यह ब्राह्मणत्व को सिरे से नकारने वाला मूवमेंट था करूणानिधि इसके बड़े नेता थे. द्रविड़ आंदोलन हिंदू धर्म के किसी ब्राह्मणवादी परंपरा और रस्म में यक़ीन नहीं रखता है और ना ही वह किसी भगवान को मानता है. यहां तक कि वह किसी भी धार्मिक चिन्ह को भी मानने से मना करता आया है.
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