भारत का इतिहास जितना पुराना है उतना हीं रहस्मयी भी है. कई रोचक जगहें और उनसे जुड़ी कहानियों को खुद में समेटे हुए हमारा देश न केवल भारतियों बल्कि विदेशियों के लिए भी काफी रोमांचक है. ऐसी हीं एक जगह और उससे जुड़ी एक घटना, जिसपर विश्वास करना थोडा कठिन है लेकिन उस जगह का अनुभव करने के बाद वाकई लगता है कि जो कहानियां हम सुनते आ रहे हैं वह सच हैं.हम बात कर रहे हैं एक ऐसे गाँव कि जो प्रतीक है एक ब्राहमण के क्रोध और वहाँ के लोगों के आत्मसम्मान की. यह जगह है राजस्थान के जैसलमेर जिले का कुलधरा गाँव, जो कि पिछले 170 सालों से खाली पड़ा हैं. ऐसा कहा जाता है कि कुलधरा गाँव के हज़ारों लोगों ने एक ही रात में इस गांव को खाली कर दिया था और वहां से कहीं और चले गए थे, लेकिन जाते-जाते उन्होंने इस गाँव को श्राप दिया कि कोई भी यहाँ नहीं बस पायेगा. तब से लेकर आज तक यह गाँव वीरान पड़ा हैं.
क्या है कुलधरा का सच ?
जैसलमेर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गाँव जो कि पालीवाल समुदाय के चौरासी गावों में से एक था. पालीवाल की कुलधार शाखा मेहनती और रईस होते थे जिन्होंने सन 1291 में लगभग छह सौ घर वाले इस गांव को बसाया था. यह गाँव पूरी तरह से वैज्ञानिक तौर पर बनाया गया था. रेगिस्तान के बीचों बीच इस गाँव में ईट पत्थर की मदद से बने इन घरों की बनावट ऐसी होती थी कि यहां कभी भी गर्मी का अहसास नहीं होता था. कहते हैं कि यहाँ घरों का निर्माण इस तरह से किया जाता था कि हवाएं सीधे घर के भीतर से होकर गुज़रती थीं जिससे कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे.
गाँव में गर्मियों के समय में तापमान 45 डिग्री तक चला जाता है लेकिन अगर आप उस गर्मी में भी उन खाली पड़ें मकानो में जायेंगे तो आपको ठंडक का अनुभव होगा. इस गांव के घरों में अनोखी बात यह है कि सभी घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे जिससे अपनी बात एक घर से दूसरे घर तक आसानी से पहुंचाई जा सकती थी.
वीरान होने की कहानी
सोचने वाली बात है ना कि जो गाँव इतना विकसित था वो गाँव अचानक वीरान कैसे हो गया. वैसे तो इस हॉन्टेड विलेज के विनाश से जुड़ी ढ़ेरों कहानियां हैं लेकिन इन सब में से जो सबसे प्रचलित कहानी जैसलमेर के राज्य मंत्री सलीम सिंह से जुड़ी है. सलीम सिंह गाँव वालों के साथ काफी शख्ती से पेश आते थे साथ हीं उसकी गंदी नज़र उसी गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर थी. सलीम सिंह ने अगले पूर्णमासी तक लड़की को उसे सौंपने के लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. गांववालों ने इस मुश्किल की घड़ी में भी लड़की राज्यमंत्री को सौंपने की बजाय आत्मसम्मान के साथ गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात 84 गांव के सारे लोग आंखों से ओझल हो गए. वो कहाँ गए यह बात आज तक किसी को नहीं पता. लेकिन जाते-जाते उन्होंने गाँव को यह श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं रह पाएगा. और आज भी उन घरों की हालत वैसी ही है जैसी उस रात को थी.
श्राप का असर या अफवाह –
पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर आज भी वहाँ देखा जा सकता है. अगर जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ लोगों ने इस जगह बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके और उन में से कुछ लोग ऐसे भी थे जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहीं आए.
कुलधरा की धरती में दबा है सोना-
इतिहासकारों की माने तो पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी सारी संपत्ति जमीन के अन्दर दबा रखी थी जिसकी चाह में आज भी पर्यटक यहां आते हैं और जो कोई भी वहाँ जाता है वह खजाने की चाह में जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है. इसीलिए आप जब कभी भी इस गाँव में घुमने जाएंगे तो आपको कई जगहों पर गड्ढे भी मिलेंगे.
कभी एक हँसता खेलता गाँव आज खंडहर में बदल चूका है, कहा जाता है कि इस गांव पर आत्माओं का साया है. घूमने आने वालों के मुताबिक आज भी वहाँ रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट सुनाई देती है. मई 2013 मे दिल्ली से गयी पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने जब कुलधरा में पड़ताल की तो उन्होंने भी उस जगह पर कुछ ऐसी स्थिति महसूस की जो सामान्य नहीं थी. हालाँकि राजस्थान सरकार ने इस जगह को टूरिस्ट प्लेस घोषित कर दिया है और हर रोज़ हज़ारों की संख्या में न केवल देश बल्कि विदेशी सैलानी भी इस रहस्मयी गाँव को देखने आते हैं.
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