हर धर्म के बारे में जाने की सबको उसुकता होती है, लेकिन बचपन में सुनी-सुनाई कहनियों को जानकर ही दिल को तसली देनी पड़ती हैं. पर आज के आर्टिकल में हम आपको कुछ परसी धर्म का इतिहास के बारे में बताएँगे, जिससे इतिहास के बारे में पढ़ने वाले लोगों के लिए यह बहुत अच्छा विषय हैं.
ईरान जब पूर्वी यूरोप से लेकर मध्य एशिया तक फैला हुआ एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्त्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव को रखा था.
परसी धर्म का इतिहास में बताया गया है कि जरथुस्त्र व उनके अनुयायियों के बारे में विस्तृत इतिहास का ज्ञात नहीं है, क्योंकि यह पहले सिकंदर की फौजों ने अरब आक्रमणकारियों ने प्राचीन फारस का (आज के वक़्त में जो ईरान हैं) लगभग सारा धार्मिक और सांस्कृतिक साहित्य को नष्ट कर डाला था. आज हम इस इतिहास के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, तो वह ईरान के पहाड़ों में उत्कीर्ण शिला लेखों तथा वाचिक परंपरा की बदौलत ही है.
सातवीं सदी ईस्वी तक आते-आते फारसी साम्राज्य अपना पुराना वैभव तथा शक्ति खो चुका था. जब अरबों ने इस पर निर्णायक विजय प्राप्त कर ली थी, तो अपने धर्म की रक्षा के लिए अनेक जरथोस्ती धर्मावलंबी समुद्र के रास्ते भाग निकले और उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली थी.
परसी धर्म का इतिहास जहाँ वह ‘पारसी’ (फारसी का अपभ्रंश) कहलाए गए. आज विश्वभर में मात्र सवा से करीब डेढ़ लाख के बीच जरथोस्ती हैं. इनमें से आधे से अधिक भारत में रहते हैं.
फारस के शहंशाह विश्तास्प के शासनकाल में पैंगबर जरथुस्त्र ने दूर-दूर तक घूम-घूमकर अपना संदेश पंहुचाया. उनके अनुसार ईश्वर एक ही है (उस समय फारस में अनेक देवी-देवताओं की पूजा की रित थी). इस ईश्वर को जरथुस्त्र ने ‘अहुरा मजदा’ कहा अर्थात ‘महान जीवन दाता’ के नाम से प्रचलित हुए,
- अहुरा मजदा कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व, शक्ति, ऊर्जा है. कहा जाता हैं कि जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है.
- इनमें एक अहुरा मजदा की आत्मा, ‘स्पेंता मैन्यू’ हैं. दूसरी दुष्ट आत्मा ‘अंघरा मैन्यू’ हैं. इस दुष्ट आत्मा के नाश के लिए ही अहुरा मजदा ने अपनी सात कृतियों यथा आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति, पशु, मानव और अग्नि से इस भौतिक विश्व का सृजन किया गया हैं.
- वह जानते थे कि अपनी विध्वंसकारी प्रकृति और अज्ञान के चलते अंघरा मैन्यू इस विश्व पर हमला कर सकते हैं और इसमें अव्यवस्था, असत्य, दुःख, क्रूरता, रुग्णता एवं मृत्यु का प्रवेश हो जाएगा.
- मनुष्य, जो कि अहुरा मजदा की जो सर्वश्रेष्ठ कृति है, कि इस संघर्ष में केन्द्रीय भूमिका है. उसे स्वेच्छा से इस संघर्ष में बुरी आत्मा से बदला लेना होता है. इस युद्ध में उसके अस्त्र अच्छाई, सत्य, शक्ति, भक्ति, आदर्श और अमरत्व होते हैं. इन सिद्धांतों पर अमल कर मानव विश्व की तमाम बुराई को समाप्त करने ही हिम्मत रखता हैं.
- कुछ अधिक वैज्ञानिक कसौटी पर धर्म को परखने वाले ‘स्पेंता मैन्यू’ की व्याख्या अलग रूप से करते हैं. इसके अनुसार ‘स्पेंता मैन्यू’ कोई आत्मा नहीं, बल्कि संवृद्धिशील, प्रगतिशील मन या मानसिकता होती है.
पारसियों का धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ को माना जाता हैं जो कि अवेस्ता भाषा में लिखा गया हैं. इस ग्रंथ को 5 भाग में ही उपलब्थ हैं, जो इस प्रकार हैं-
- यस्तम(यज्ञ)- इसमें संस्करों और अनुष्ठानों के मंत्रो का संग्रह है.
- विसपराद- इसमें राक्षसों और भूत-परेत को दूर रखने के लिए नियम बताए गए हैं.
- यष्ट- इसमें पूजा-प्राथना का ज्ञान हैं.
- खोरदा अवेस्ता- रोज़ना की जाने वाली प्रार्थनों के संग्रह की पुस्तक हैं.
- अमेश स्पेन्ता- इसमें यज़ूतों की स्तुति की गई हैं.
आप परसी धर्म का इतिहास के बारे में तो जान गए होंगे अब कुछ भारत में पारसी धर्म से जुड़ी जानकारी. भारत से सभी जानते है और भारत के साथ ईरान के बीच व्यापार के संबंध के साथ-साथ राजनैतिक संपर्क आरंभिक काल से रहे हैं. भारत में पारसी आठवीं से दसवीं सदी के दौरान आए थे, जबकि लगभग 19वीं सदी के मध्य में ईरानी यहाँ पहुंचे थे. इन्होने यहाँ चाय की छोटी दुकानें खोलकर मामूली शुरुआत की. इसके बाद इन्होने अपना हाथ कृषि और औषधि क्षेत्र में प्रवेश किया और आज यह एक फलता–फूलता समुदाय बन चूका है. पारसियों ने नारियल और ताड़ के पेड़ उगाने वाले फल के उत्पादक और कृषकों के रूप में शुरुआत की. फिर इन्होने बड़े व्यवसायों में आन शुरू किया. सूरत के ‘वाडिया परिवार’ ने जहाज़-निर्माण के रूप में नाम तो कमाया हीं और साथ ही शाही नौसैना को युद्ध पोतों की आपूर्ति भी की. इस परिवार (1808-77) से एक सदस्य अर्देशिर कर्सेतजी वाडिया ने युद्ध पोतों में भाप के इंजन का पहली बार इस्तेमाल कर मुंबई में गैस से रोशनी की भी शुरुआत को अंजाम दिया. वह ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन’ से वह 1941 में सदस्य चुने जाने वाले पहले भारतीय थे.
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