इतिहास पर नज़र डाले जब हवाई यात्रा, ट्रेन और सड़क का कोई माध्यम नही था तब व्यापार और यात्री परिवहन के लिए नदियां हमेशा एक समृद्ध माध्यम रहीं, लेकिन सड़क और रेलतंत्र के विकास के साथ ही नदी आधारित परिवहन पर सरकार समेत सभी नितिनिर्माताओं का ध्यान कम होने लगा, अब जब विकास और उन्नति के साथ ही पर्यावरण को बनाए रखने की चुनौती सभी के सामने खड़ी है. तो सरकार का परिवहन के लिए लुप्त हो चुके जलमार्ग विकास की ओर ध्यान केंद्रित हो रहा है. गंगा-यमुना और देश की अन्य नदियों को पुनर्जीवित करने के साथ ही 111 नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग में तब्दील करने की महत्त्वाकांक्षी योजना पर काम चल रहा है.
नदियों से व्यापार मार्ग चालू कर आर्थिक प्रगति की नई अवधारणा अपना ताना-बाना बुन रही है. इस बारे में केंद्र सरकार कितनी गंभीर है, यह इसी तथ्य से पता चलता है कि सागरमाला परियोजना के तहत बंदरगाह आधारित विकास के लिए आठ हजार करोड़ रुपए की परियोजना हाथ में ली गई है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सागरमाला परियोजना की अवधारणा और सांस्थानिक ढांचे को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है.
इसका लक्ष्य तटीय राज्यों में बंदरगाह विकास करना है. केंद्रीय वित्तमंत्री ने अपने 2014-15 के बजट भाषण में राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर जलमार्ग विकास परियोजना की घोषणा की. इसके तहत गंगा नदी पर वाराणसी से हल्दिया तक कमर्शियल नौवहन शुरू करना है. इसी क्रम में इस साल तीन जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केंद्रीय कमेटी ने 5369 करोड़ रुपए की लागत से विकसित होने वाली जलमार्ग विकास परियोजना के लिए मंजूरी दी. इससे गंगा नदी पर बन रहे राष्ट्रीय जलमार्ग-1 की नौवहन क्षमता बढ़ाई जाएगी.
जनसत्ता डॉट कॉम पर आई रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना के पूरा होने पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लेकर पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक कुल 1360 किलोमीटर लंबे जलमार्ग पर डेढ़ हजार-दो हजार टन की क्षमता वाले पोतों का वाणिज्यिक संचालन किया जा सकेगा. विश्व बैंक के वित्तीय एवं तकनीकी सहयोग से विकसित की जा रही यह परियोजना मार्च 2023 में पूरी हो जाएगी. जेएमवीपी भारतीय जलमार्ग और पूरे परिवहन क्षेत्र का परिदृश्य बदल कर रख देगी. एक विकसित अंतरराज्यीय जल परिवहन संसाधन से देश के परिवहन क्षेत्र को बल मिलेगा. साथ ही, ऐसा ढांचा तैयार होगा, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था से रसद लागत का बड़ा भार कम हो जाएगा.
भारत में यह खर्च जीडीपी का पंद्रह फीसद है. यह खर्च अमेरिका की तुलना में दोगुना है. आलम यह है कि अमेरिका में अंतर्देशीय जलमार्ग की देश की परिवहन क्षमता में 8.3 फीसद हिस्सेदारी है. वहीं भारत की कुल परिवहन क्षमता में अंतर्देशीय जलमार्ग की हिस्सेदारी सिर्फ आधा फीसद है. भारत में नौवहन लायक साढ़े चौदह हजार किलोमीटर अंतर्देशीय जलमार्ग उपलब्ध है. बावजूद इसके देश में सालाना महज सत्तर-अस्सी लाख टन माल इन जलमार्गों के जरिए ढोया जा रहा है. इस क्षमता को असाधारण ऊंचाई तक बढ़ाया जा सकता है.
राष्ट्रीय जलमार्ग-1 उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होकर गुजरता है. ये चारों देश की घनी आबादी वाले राज्य हैं. देश का चालीस फीसद से ज्यादा कारोबार और माल इसी क्षेत्र से या तो उत्पन्न होता है या फिर इसी क्षेत्र के लिए रवाना होता है. जाहिर है, इन राज्यों में वृहद बाजार बनने की संभावना है. जबकि वर्तमान में देश का महज दस फीसद माल इन राज्यों में गंगा नदी के मैदानी इलाकों से होकर गुजरता है. इन राज्यों में जेएमवीपी के जरिए बड़े पैमाने पर निवेश और रोजगार के अवसर पैदा होंगे. विश्व बैंक की आर्थिक समीक्षा के अनुसार, जेएमवीपी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में सीधे तथा परोक्ष, दोनों तरह से मिलाकर डेढ़ लाख रोजगार पैदा करेगी. मुख्य रूप से यह परियोजना हल्दिया, हावड़ा, कोलकाता, फरक्का, साहिबगंज, भागलपुर, पटना, गाजीपुर और वाराणसी आदि शहरों और इनसे सटे औद्योगिक क्षेत्रों को लाभान्वित करेगी. इस क्षेत्र में रेल और सड़क कॉरिडोर अपनी क्षमता के लिहाज से परिपूर्ण हो चुके हैं. इस कारण जलमार्ग-1 परियोजना को सस्ता, पर्यावरण हितैषी तथा र्इंधन बचाने वाली अहम परियोजना माना जा रहा है.
खासकर भारी और खतरनाक माल की ढुलाई के लिहाज से. प्रस्तावित ईस्टर्न डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर एवं राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के साथ मिल कर राष्ट्रीय जलमार्ग-1 देश के ईस्टर्न ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को बनाता है. परिवहन का यह जाल तैयार होने पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों के ईस्टर्न यातायात कॉरिडोर से जुड़ जाएगा. इन राज्यों से होकर कोलकाता बंदरगाह और भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट के जरिए बांग्लादेश, म्यांमा, थाईलैंड, नेपाल के साथ ही अन्य पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी देशों से वाणिज्यिक मार्ग संपर्क बनाया जा सकेगा. अभी उत्तर भारत में ढुलाई होने वाले माल का बड़ा हिस्सा सड़क के रास्ते कांडला और मुंबई के बंदरगाहों तक पहुंचता है जिसमें काफी पैसा खर्च होता है. वहीं शिपर्स पूर्वी पोतों- कोलकाता, धामरा और पारादीप- तक माल ले जाने से हिचकते हैं. इस परियोजना के विकास से माल ढुलाई का काफी हिस्सा इन पूर्वी पोतों तक पहुंचाया जा सकेगा.
अंतरदेशीय जल परिवहन मार्ग के जरिए माल ढुलाई करने से यातायात और संचालन लागत काफी हद तक घटाई जा सकेगी. जलमार्ग से ढुलाई की लागत महज पचास पैसे प्रति टन प्रति किलोमीटर है, जबकि रेलमार्ग पर यह लागत एक रुपए और सड़क मार्ग पर डेढ़ रुपए है. ऊर्जा इस्तेमाल के आंकड़े भी इस तथ्य को सत्यापित करते हैं. जहां सड़क मार्ग पर डेढ़ सौ किलो सामान ढोने में एक अश्वशक्ति ऊर्जा खर्च होती है, रेलमार्ग से इतने में पांच सौ किलो सामान ढोया जा सकता है, वहीं जलमार्ग के जरिए इतनी ऊर्जा से चार हजार किलो माल ढोया जा सकता है. इसी तरह जहां एक लीटर र्इंधन के खर्च से सड़क पर चौबीस टन माल प्रति किलोमीटर और रेल पर पचासी टन माल प्रति किलोमीटर ढोया जा सकता है वहीं उतने ही र्इंधन में जलमार्ग के रास्ते एक सौ पांच टन माल प्रति किलोमीटर ढोया जा सकता है. जलमार्ग पर चलने वाला दो हजार टन का एक पोत दो सौ ट्रकों और एक पूरी रेलगाड़ी का विकल्प हो सकता है.
जेएमवीपी के तहत अब तक लगभग दो हजार करोड़ रुपए के काम जारी किए जा चुके हैं. चार जगहों पर मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाए जा रहे हैं. वाराणसी में 170 करोड़ रुपए, साहिबगंज में 300 करोड़ रुपए और हल्दिया में 500 करोड़ रुपए की लागत से इन टर्मिनलों का निर्माण हो रहा है जहां जलमार्ग परिवहन सड़क और रेल से जुड़ेगा. वहीं पश्चिम बंगाल के फरक्का में 380 करोड़ रुपए की लागत से एक नए नेविगेशन लॉक का निर्माण हो रहा है. परियोजना के तहत कुल छह मल्टी मॉडल/इंटर मॉडल टर्मिनलों, रोल ऑनरोल ऑफ जेटी और फेरी टर्मिनल बनाए जा रहे हैं. भारत में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर की नदी सूचना प्रणाली बनाई जा रही है. राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (गंगा नदी) पर बनने वाली यह प्रणाली उसी तर्ज पर काम करेगी जैसे कि विमानों के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोल करते हैं. जीपीएस से जुड़ी यह व्यवस्था जलयानों के परिचालन की हर वक्त निगरानी करेगी और उन्हें किसी भी आपातकाल में मदद पहुंचाने और रास्ता दिखाने के काम आएगी. जेएमवीपी से पर्यावरणीय हित भी सधेंगे. बाढ़ नियंत्रण और नदी संरक्षण में मदद मिलेगी.
अंतर्देशीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण परिवहन ऐसे मानक वाले पोत विकसित कर रहा है, जो कम गहराई में चलाए जा सकेंगे. दो हजार टन की क्षमता वाले ऐसे पोत के लिए महज 2.2-3 मीटर की गहराई और 45 मीटर चौड़ाई की जरूरत होगी. जलमार्ग पर हादसे होने की कम से कम आशंका है. जलमार्ग के पोतों में प्राकृतिक गैस इस्तेमाल करने का प्रस्ताव है, जो कार्बनडाइ आक्साइड समेत अन्य हानिकारक गैस कम कर देती है. एलएनजी इंजन में डीजल इंजनों की तुलना में कम शोर होता है. जलमार्ग के विकास में जमीन अधिग्रहण की कम जरूरत है. इस कारण पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषिकार्य और लोगों की आजीविका पर कम से कम असर होगा.
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