16 दिसम्बर साल 2012 ठण्ड से कांपती जिंदगियों के बीच देश की राजधानी दिल्ली एक ऐसे अपराध से दहल गई जिसकी कल्पना मात्र से लोगों की रूह कांप जाती है. जी हाँ आज हम बात कर रहे हैं दिल्ली को हिलाकर रख देने वाले बहुचर्चित निर्भया काण्ड की.
दिल्ली के वसंतकुंज में निर्वस्त्र पड़े युवक और युवती के मिलने से हड़कंप मच गया. दोनों के साथ मारपीट हुई थी उन्हें अधमरा समझकर छोड़ दिया गया था लेकिन युवती के साथ दरिंदगी की पराकाष्ठा पार हो चुकी थी.
सामूहिक बलात्कार के बाद उसके गुप्तांगों में लोहे की रॉड से प्रहार किया गया था. जीने की तमन्ना दिल में संजोये वह युवती रातभर दर्द से कराहती रही. सुबह जब एक ट्रैफिक पुलिस वाले की नज़र पड़ी तब उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया.
13 दिन तक अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच संघर्ष करने वाली उस युवती की आखिरकार सिंगापुर के एक अस्पताल में मौत हो गई. पुलिस ने बाद में अपराधियों को पकड़ा उनपर केस चला और सज़ा भी हुई. अपराधियों ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यु दाखिल कर बचने की कोशिश तो की लेकिन कोर्ट ने उसे ख़ारिज कर मौत के फैसले को बरक़रार रखा है. आज हम आपको उसी घटना के कुछ पहलुओं के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.
- जानिए कौन थी वो और क्या हुआ उसके साथ?
क़ानून की बंदिशों की वजह से उसके निजी जीवन के बारे में ज्यादा बताना यहाँ संभव नही है. वह उत्तर प्रदेश के एक ग्रामीण इलाके में पैदा हुई थी. उनके माता-पिता दिल्ली में रहते हैं. जिस समय यह घटना हुई वह अपने पुरुष साथी के साथ दक्षिणी दिल्ली के एक मॉल से घर वापस जा रही थी. रात के करीब 8 बजे होंगे तभी एक बस आकर उनके सामने रूकती है और दोनों उस पर सवार हो जाते हैं.
पुलिस के मुताबिक़ उस निज़ी बस में पहले से 5 लोग सवार थे जो नशे में थे. पहले तो उन पाँचों ने उसे और उसके साथी के साथ गाली-गलौज की. इसका विरोध करने पर पाँचों आरोपी उन दोनों पर टूट पड़े. दोनों को जमकर मारा-पीटा नंगा करके जबरदस्ती की. जब सामूहिक बलात्कार से भी जी नही भरा तब उन दरिंदों ने युवती के गुप्तांग में लोहे की रॉड डालकर बुरी तरह घायल कर सड़क के किनारे फेंक दिया. उन पांच आरोपियों में 1 नाबालिग भी था.
- निर्भया काण्ड के बाद पूरे देश में फूटा लोगों का गुस्सा
दिल्ली के इंडिया गेट से लेकर रायसीना हिल तक लोगों ने अपना विरोध जताया. तमाम स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आम जनता ने पूरे देश में कैंडिल मार्च निकालना शुरू किया. सरकार पर इस आन्दोलन का असर हुआ. फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई गईं. संसद में कई कड़े कानून भी इसी बाबत बनाए गए जिससे कि फिर कोई बच्ची दरिन्दगी का शिकार ना हो. पकड़े गए पाँचों आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया. उनमें से दो सगे भाई भी थे. एक था मुकेश और दूसरा राम सिंह. राम सिंह ने तो तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी लेकिन मुकेश आज भी फांसी की सजा के साथ अपनी जिंदगी जेल में काट रहा है.
मुकेश और राम सिंह की माँ को अपने बच्चों की करनी पर पछतावा है. वो कहती हैं कि यदि कोख से लड़की हुई होती तो अच्छा था. राम सिंह की माँ अब बिलकुल अकेली है उसे आज भी उम्मीद है कि उनका बेटा जेल से वापस जरुर आएगा. इस दुर्दांत काण्ड में एक नाबालिग भी था जिसे कानून के तहत फांसी नही हो सकती थी. उसे 3 साल तक बाल सुधार गृह में रखने के बाद छोड़ दिया गया.
दर्द से कराहती युवती को सफदरजंग अस्पताल से एयरलिफ्ट करके सिंगापुर इलाज़ के लिए भेजा गया था. लेकिन डॉक्टर उसे बचा नही पाए. वह जीना चाहती थी, उसने यह बात अपनी माँ से भी कही थी लेकिन दुर्भाग्य ऐसा हो नही सका. मौत के बाद सरकार ने उसकी याद में महिला आयोग की नई बिल्डिंग का नाम निर्भया रखा. देश के राष्ट्रपति द्वारा उसे रानी लक्ष्मीबाई सम्मान दिया गया. अमेरिका ने भी उसे सम्मानित किया. उसके नाम पर बीबीसी ने एक फिल्म भी बनाई.
- देश में क्या है रेप जैसे मामलों की वर्तमान तस्वीर?
इस घटना के बाद देश में रेप पर कड़े कानून बनाए गए. लोगों को लगने लगा कि अब ऐसे दुर्दांत वाकये पेश नही आएँगे और लडकियां महफूज़ रहेंगी. काश!! ऐसा हो पाता तो सचमुच उस बहादुर बच्ची की आत्मा के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होती. समय बीतता गया, हो सकता है समय के साथ कुछ बदला भी हो!! लेकिन नही बदला तो वह है देश में बलात्कार जैसी दुखद घटनाएं. कभी 2 साल की बच्ची तो कभी 4 साल की मासूम को जानवर रुपी गिद्ध नोचते रहते हैं.
अभी हाल में जम्मू के कठुआ रेप काण्ड के बाद देश की संसद ने एक बार फिर से नया कानून बनाते हुए 12 साल या इससे कम उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार की घटना पर फांसी की सजा का कानून बनाया है. इतना सब होते हुए भी बलात्कार है कि रुकने का नाम नही ले रहा. देश में ना जाने कितनी निर्भया रोज दरिंदों के हांथों नोची जा रही हैं और हमारा सिस्टम कानून की ढपली बजाता रहा है.
इसे भी पढ़े: रेलवे के इस नियम से अब लेटलतीफी का नो टेंशन