फ्रांसासी उपन्यासकार लुई सेबेस्तिए मार्सिए के उपन्यास के नायक अक्सर किताबें पढ़कर बदल जाते हैं। हमारी सरकार को भी यही डर लगा रहता है कि कहीं लोग किताबें पढ़कर बदल न जाएं। इसलिए अक्सर किताबें बैन कर दी जाती हैं। यहां जानिए, उन किताबों के बारे में जिन्हें पढ़ना तो दूर अगर बुक शेल्फ़ में भी रख लिया तो जेल जाना पड़ सकता है…
लातिनी विद्वान और कैथोलिक धर्मसुधारक इरैस्मस ने एडेजेज़ (1508) में लिखा है…
किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन सा ऐसा कोना है, जहां ये नहीं पहुंच जातीं? हो सकता है कि जहां-तहां एकाध जानने लायक चीज़ें भी बताएं, लेकिन इनका ज़्यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। बेकार ढेर हैं, क्योंकि अच्छी चीज़ों की अति भी हानिकारक ही है, इनसे बचना चाहिए….
सरकार बचती रही है। ऐसी हर किताब से जो उनसे सवाल करती हैं, उन पर सवाल उठाती है। जिस तरह मार्सिए के उपन्यास में नायक किताबें पढ़कर बदल जाते हैं उसी तरह सरकार को भी यही लगता है कि किताबें पढ़कर लोग आभासी न हो जाएं। उनसे सवाल न करने लगें, इसलिए बेहतर है कि इन किताबों को बैन कर दिया जाए।
यहां हम आपको कुछ ऐसी किताबों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें पढ़ना तो दूर अगर आपने घर में रख भी लिया तो आपको 2 साल की जेल और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
नाइन ऑवर्स टू रामा (Nine hours to Rama)
1962 में पहली दफ़ा प्रकाशित यह किताब प्रसिद्ध इतिहासकार और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर स्टैनली वोलपर्ट (Stanley Wolpert) ने लिखी है। भारत में इस किताब को बैन हुए लगभग 57 वर्ष हो चुके हैं।
इस किताब में कल्पना के माध्यम से बताया गया है कि किस तरह नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रची थी। माना जाता है कि इस किताब को इसलिए बैन कर दिया गया क्योंकि यह किताब महात्मा गांधी को लेकर भारत की खराब सुरक्षा व्यवस्था का खुलासा करती है।
हालांकि भारत में इस किताब को खरीदना और रख़ना गौर-कानूनी है लेकिन नेट पर इस किताब की पीडीएफ (Pdf) फाइल आप डाउनलॉड कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे, आप जेल जा सकते हैं!
द ग्रेट सोल (Great Soul: Mahatma Gandhi and his struggles with India)
साल 2011 में पहली दफ़ा प्रकाशित यह किताब पुलित्ज़र प्राइज़ विजेता और न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादक रहे जोसेफ़ लेलिवेल्ड (Joseph Lelyveld) ने लिखी है। इस किताब में महात्मा गांधी की निजी ज़िदगी को लेकर बेहद चौकाने वाले खुलासे किए गए हैं।
जोसेफ़ ने अपनी किताब में महात्मा गांधी के समलैंगिक रिश्तों की बात की है। इसके अलावा धर्म को लेकर उनकी समझ पर भी सवाल उठाए गए हैं।
इस किताब को पहले गुजरात में और फिर बाद में केंद्रीय सरकार द्वारा बैन कर दिया गया। कस्टम डिपार्टमेंट आपको यह किताब भारत लाने की मंजूरी नहीं देता।
वॉर एंड पीस (War and Peace)
बेहद चर्चित भीमा कोरेगांव मामले को लेकर जब सुनवाई चल रही थी तो जज ने ‘वॉर एंड पीस’ नाम की किताब का ज़िक्र किया था। उन्होंने इस मामले के आरोपी वेरनॉन गोंजाल्विस से पूछा था कि आपके पास यह किताब क्यों थी?
इस पर साहित्य जगत में हंगामा मच गया था। लोगों ने इसे लियो टॉल्सटॉय की किताब ‘वॉर एंड पीस’ समझ लिया था जबकि जज ने साल 2012 में प्रकाशित बिस्वजीत रॉय (Biswajit Roy) की किताब ‘वॉर एंड पीस इन जंगलमहल: पीपल, स्टेट एंड माओइस्ट्स’ की बात की थी। माओवाद पर आधारित यह किताब भारत में प्रतिबंधित है।
नेट पर आपको शायद लियो टॉल्सटॉय की ‘वॉर एंड पीस’ तो मिल जाएगी पर बिस्वजीत रॉय की ‘वॉर एंड पीस’ मिलना बेहद मुश्किल है।
शिवाजी: हिन्दू किंग इन इस्लामिक इंडिया (Shivaji: Hindu king in Islamic India)
2003 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित यह किताब अमेरिकी लेखक जेम्स डबल्यू लेन (James W. Laine) ने लिखी है। उनकी इस किताब पर सामाजिक विद्वेष को बढ़ावा देने का आरोप है।
इस किताब के प्रकाशन पर हिंदू धर्म के लोग इससे विशेष तौर पर आहत हुए। खासकर इस किताब के 93 पृष्ठ के एक हिस्से को लेकर खूब हंगामा हुआ।
महाराष्ट्र सरकार ने 14 जनवरी, 2004 को इस किताब को बैन करने का निर्णय लिया था। 2007 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह बैन हटा लिया था लेकिन लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया था।
सरकार गीता प्रेस की महिला विरोधी किताबों को बर्दाश्त कर सकती है लेकिन ऐसी किताबें नहीं जो गलत नहीं, अलग सोचती हैं। गीता प्रेस की ये किताबें आपको बड़ी आसानी से भारत के रेलवे स्टेशनों पर 5 रुपये में मिल जाएंगी। ऐसी किताबें जो सती प्रथा जैसी क्रूर रीतियों का समर्थन करती हैं। महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझती हैं।
बेहद अजीब है न! वाकई बहुत अजीब है…और गलत भी…