इंसानों को इस बात का खतरा हमेशा से ही रहा है कि आने वाले समय में मशीन पूरी तरह से इंसान की जगह ले लेगा. जिस तरीके से आज तकनीकीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है उसे देखते हुए इस बात पर संदेह भी नहीं किया जा सकता है. संभावनाएं हैं कि भविष्य में ऐसा हो भी सकता है. इसके अलावा आज आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानि की AI भी इंसानों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है.
यह खतरा इंसानों के लिए हाल ही में फेसबुक रिसर्चरों के साथ हुए एक घटना के बाद एकदम सच्चा लगने लगा है. साल 2016 के जून में घटित यह मामला AI से चलने वाले चैटबॉट्स यानि कि एक चैटिंग करने वाले सॉफ्टवेयर से जुड़ा हुआ है.
दरअसल फेसबुक अपने AI रिसर्च लैब(FAIR) में मशीन लर्निंग ऐलगॉरिथम्स का इस्तेमाल करते हुए यह कोशिश कर रहा था कि ये चैटबॉट्स ज्यादा बेहतर ढंग से काम कर सकें. इस दौरान रिसर्चरों ने पाया कि ये चैटबॉट्स एक ऐसी भाषा में बात कर रहे थें. जो उन्होंने (चैटबॉट्स ने) खुद बनाई थी और वो भाषा इंसानी समझ से बाहर थी. इन बोट्स का अपनी भाषा में बात करना इस बात का साफ संकेत दे रहा था कि अब ये इस हैसियत में आ गए हैं कि इंसानी सत्ता को मात दे सके. लिहाजन नतीजा यह हुआ कि इसे एक खतरा मानते हुए फेसबुक ने आनन-फानन में इस AI सिस्टम को बंद कर दिया.
अगर इस मामले को AI के नजरिए से देखा जाए तो यह एक बहुत ही बड़ी कामयाबी है. कामयाबी इसलिए है क्योंकि इस दौरान मशीनें उस ज्ञान को आगे बढ़ा रहे हैं, जो उन्हें किसी कोडिंग के जरिये सिखाई गई है. आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को दुनिया में चौथी क्रांति के रूप में भी देखा जा रहा है. जाहिर सी बात है कि जब ऐसी मशीनें जो इंसानों के तरह या उससे बेहतर सोचती है वो हमारे इर्द-गिर्द होंगी और वो हर काम कर लेगी जो इंसान करते हैं तो कैसा होगा?
इन मशीनों से इंसानों के पिछड़ जाने का खतरा उस वक़्त पैदा होता है जब इस तरह की आर्टिफिशल इंटेलिजेंस उन मशीनों में खुद ही अपने हालात के मुताबिक काम करने की क्षमता को विकसित कर देती है. कंप्यूटर विशेषज्ञ और वैज्ञानिक के मुताबिक फिलहाल AI का सामर्थ्य इसकी प्रोग्रामिंग पर निर्भर करता है. ऐसे में यदि फैक्ट्रियों और घरों में काम करने वाले एआई से लैस मशीन या रोबॉट को अचानक किसी घटना से जूझना पड़े तो वैसी स्थिति में वह नाकाम हो जाता है क्योंकि हर आपातकाल घटना की पहले से प्रोग्रामिंग नहीं हो सकती. लेकिन भविष्य में इस बात की संभावनाएं हैं. कुछ ऐसी अक्लमंद मशीनें बनेंगी जो इंसानों की तरह ही सोचना-समझना शुरू कर देंगी. लेकिन ऐसा होने में कम से कम अभी सौ साल लगेंगे. इतना समय इसलिए लगेगा क्योंकि इंसान बहुत थोड़ी जानकारी के सहारे बहुत कुछ सीख सकता है, लेकिन कंप्यूटर को उतना ही सीखने के लिए बहुत ज्यादा डेटा और बेहद कुशल सॉफ्टवेयर की जरूरत पड़ती है.
हालांकि दो अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रिसर्च पेपर में दावा किया है कि उन्होंने कंप्यूटर को इंसानी तरीके से सीखना सिखाया है.
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