पूरी दुनिया जानती है कि भारत एक पारंपरिक और सांस्कृतिक उत्सव वाला देश है. ऐसा इस लिए है क्योंकि भारत एक बहुधर्मी और बहुसंस्कृतिक देश है. हमारे भारत देश में आपको हर महीने उत्सवों का आनन्द लेने मिल सकता है. यह एक धर्म, भाषा, संस्कृति और जाति में विविधताओं से भरा धर्मनिरपेक्ष देश है, यहां हमेशा मेलों और त्योहारों के उत्सवों के कारण उत्सव का माहौल बना रहता है. यहां अलग-अलग धर्म से जुड़े लोगों के अपने खुद के सांस्कृतिक और पारंपरिक त्योहार है. हम आज आपको भारत के सांस्कृतिक उत्सव के बारे में बताने जा रहे हैं.
पूरे भारत वर्ष में अलग-अलग धर्मों के लोगों के द्वारा द्वारा अलग-अलग पर्व मनाये जाते हैं. ये अपने सांस्कृतिक पर्व को अपने महत्वपूर्ण इतिहास, रीति रिवाज और विश्वास के आधार पर अपने-अपने अंदाज में हर एक पर्व को मनाते हैं. हर एक उत्सव का अपना एक इतिहास, पौराणिक कथाएँ और मनाने का विशेष महत्व है. इतना ही नहीं बल्कि भारत से बहार रहने वाले विदेशों में रह भी रहकर भारत के उत्सव को बहुत उत्साह और जुनून के साथ मनाते हैं.जैसा कि सभी जानते हैं भारत एक ऐसा देश है जो अपने आप में विविधता और एकता का उदाहरण है. क्योंकि यहाँ हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई तथा जैन आदि धर्म के लोग एक साथ मिल कर रहते हैं. हमारे देश में भारत के सांस्कृतिक उत्सव को राष्ट्रीय स्तर पर भी मनाया जाता है जबकि कुछ उत्सवों को क्षेत्रीय स्तर पर मनाया जाता हैं. अपनी-अपनी पद्धति और धर्म के अनुसार उत्सवों को अलग-अलग वर्गों में बांटा गया है. हम आपको आज कुछ ऐसे ही भारत के उत्सव और सांस्कृतिक पर्व के बारे में बताने जा रहे हैं.
हिन्दू त्यौहार
कहते हैं पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा कई सारे सांस्कृतिक पर्व और पारंपरिक उत्सव मनाये जाते हैं. हिन्दू धर्म को केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे पूरे विश्व के सबसे प्राचीन संगठित धर्म के रुप में माना जाता है. आपको यह जान कर गर्व होगा कि हिंदू धर्म को दुनिया के तीसरे सबसे बड़े धर्म के रुप में भी गिना जाता है. हिन्दू धर्म में हर त्योहार और उत्सव को मनाने की अपनी खास पद्धति और विधि है, इस धर्म में देवी-देवताओं का विशेष तरीके से पूजा पाठ करना और भोग इत्यादि लगाना, व्रत रखना, दान करना, कथा सुनना, हवन, आरती आदि बहुत कुछ हैं. जिसके द्वारा किसी विशेष मुहूर्त पर पूजा-पाठ की प्रक्रिया को संपन्न किया जाता है. धर्म के सभी लोग बिना किसी जाति, उम्र, और लिंग की भेद-भाव किए बिना अपने सांस्कृतिक पर्व का लुफ्त उठाते हैं.हिन्दू व्रत-त्योहारों की तारीख को हिन्दू पंचांग के अनुसार तय किया जाता है, चन्द्र संबंधी कैलेंडर जो कि पूरे साल सूर्य और चन्द्रमा की चाल पर निर्भर करता है. इस धर्म में कुछ ऐसे भी व्रत एवं त्योहार हैं जिन्हें ऐतिहासिक पौराणिक कथाओं के आधार पर मनाया जाता है. कई व्रत एवं त्योहार को मौसम के बदलने पर और कुछ पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए भी मनाया जाता है. भारत के उत्सव और सांस्कृतिक पर्व को कुछ खास संप्रदाय के लोग या भारतीय उपमहाद्वीप के लोग ही मनाते हैं.
हिन्दू धर्म में बहुत सारी मान्यताओं को इनके धार्मिक ग्रंथों जैसे भगवत गीता, महाभारत, और रामायण, ऋगवेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद के आधार पर भी मनाया जाता है. हिन्दू धर्म में देवी देवताओं के जन्म दिवस को भी बहुत ही उत्साह और उमंग से मनाया जाता है.
मुस्लिम त्यौहार
मुस्लिम धर्म में कई सारे धार्मिक पर्व हैं जिन्हें बहुत ही उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. मुस्लिम धर्म के पर्व को पुरे विश्व में लोग बहुत ही उमंग और उत्साह के साथ मानाते हैं. मुस्लिम धर्म में कई सारे धार्मिक पर्व है जिन्हें वो अपने इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पूरे जोश और जूनून के साथ मनाते हैं. इस्लाम में कुछ महत्वपूर्ण इस्लामिक पर्व हैं जैसे रमजान (रामादान), ईद-ए-मिलाद, मुहर्रम, बकरीद आदि. इन पर्वों को इस्लाम में बहुत ही खास तरीके से मस्जिदों में दुआ माँग कर, दावत देकर और एक-दूसरे को बधाई देकर मनाते हैं.
इन त्योहारों के दौरान मुस्लिम अपने घरों को रात में रंग-बिरंगे लाइट्स और फूलों से सजाते हैं. ये लोग अपने त्योहारों को पूरी रात एक-दूसरे के साथ मिलकर मनाते हैं. भारत के सांस्कृतिक उत्सव में इस्लामिक त्योहारों का भी बहुत महत्व है इसीलिए कुछ इस्लामिक पर्वों को राष्ट्रीय अवकाश के रुप में घोषित किया गया है. इस दौरान देश भर में शिक्षण संस्थानों, सरकारी कार्यालयों और दूसरे काम करने की जगहों पर छुट्टी रहती है. कुछ इतिहासकारों के मुताबिक 7वें दशक के लगभग मुहम्मद साहब ने इस्लाम को स्थापित किया गया था जो कि अब पूरे दुनिया का दूसरा बड़ा धर्म बन चुका है. इस्लाम धर्म में पाँच महत्वपूर्ण स्तंभ है जैसे “शहदाह (भरोसा), सलाअ (प्राथर्ना), ज़काह (दान), रोजा (व्रत) और हज़ (तीर्थस्थान)”.
सिक्ख त्यौहार
एक बात तो पूरा विश्व जनता है कि भारत को बहुधर्मी, सांस्कृतिक, और पारंपरिक देश के रुप में देखा जाता है, इसीलिए इस देश को विविधता में एकता के लिए भी जाना जाता है. हमारे देश में सिक्ख धर्म का भी वास है. सिक्ख धर्म के लोगों भी बहुत तरह के अलग-अलग रीति-रिवाज वाले व्रत एवं उत्सव मानते हैं. जिन्हें सिक्ख धर्म के लोग खूब मस्ती और उमंग के साथ मनाते हैं. इस धर्म का आधार इनके दस सिक्ख गुरुओं के जीवन और उनकी दी गयी सीखों (पाठों) पर आधारित हैं. सिक्ख धर्म के लोग कुछ हिन्दू त्योहारों को भी मनाते है.
भारत के उत्सव और सांस्कृतिक पर्व में सिख धर्म का अपना एक अलग ही महत्त्व है. इस धर्म में सभी उत्सवों पर पूजा-पाठ करने की विधि है साथ ही इनके पवित्र ग्रन्थ जिसे “गुरुग्रंथ साहिब” भी कहा जाता है उसका नित्य पाठ किया जाता है. इस ग्रन्थ में कई सारे उपदेश निर्देशित है, जिसे पहली बार सिक्ख गुरु, गुरु नानक द्वारा संकलित किया गया था और बाद में सिक्ख गुरु, गुरु अर्जुन ने संपादित किया. सिख धर्म अपने गुरु ग्रन्थ साहिब को ही देवताओं की उपाधि देते हैं और किसी भी सिख त्योहार को मनाते समय वे इसे पालकी में रखकर सार्वजनिक जूलुस (बारात) के साथ बाहर ले जाते हैं. ये भगवान से जुड़ने के लिए और अपने उत्सव को मनाने के दौरान गुरुबानी गाना, पवित्र गीत, पवित्र किताबों को पढ़ना और धार्मिक गीत-संगीत करते हैं. भारत के सांस्कृतिक उत्सव में सिक्ख धर्म का एक उत्तम स्थान है.
जैन पर्व
भारत में जैन धर्म का एक विशेष समरूप देखने को मिलता है. जैन धर्म के लोग अपने व्रत और त्योहारों को बहुत सारे रीति-रिवाज़ और धार्मिक रस्मों के साथ मनाते हैं. इस धर्म में लोग अपने रीति-रिवाज़ के तहत मूर्ति पूजा में ज्यादा विश्वास रखते हैं. इनके त्योहार तीर्थांकरों की जीवन की घटनाओं और उनके जीवन चरित्र पर आधारित है. जो कि आत्मा की शुद्धि और पवित्रता को जगाता है. मूल रूप से जैन धर्म के रीति-रिवाज़ दो भागों में विभाजित होते हैं पहला कार्या और दूसरा क्रिया. भारत के उत्सव हो या सांस्कृतिक पर्व जैन धर्म में भारत के सांस्कृतिक उत्सव को जिस उत्साह और तरीके से मनाया जाता है उसका एक अलग ही महत्त्व है. जैन श्वेताम्बर के अनुसार छ: अनिवार्य कर्तव्य होते हैं जिन्हें आवश्यकाश् कहते हैं जो कि चतुर्विशंती-स्तव: तीर्थांकरों की तारीफ करना, कयोत्सरगा: ध्यान, प्रतिक्रमण: पिछले बुरे कामों का प्रायश्चित करना, प्रत्याख्यना: किसा भी चीज का त्याग करना, समयीका: शांति और ध्यान, वंदन: गुरुजनों का आदर करना आत्मसंयमी बनना”.
इस धर्म में जैन दिगम्बर के अनुसार छ: कर्तव्य है जो “दाना: दान, देवपूजा: तीर्थांकरों की पूजा करना, गुरु उपस्थी: गुरुजनों का आदर करना आत्मसंयमी बनना, संयम: विभिन्न नियमों से खुद पर काबू रखना, स्वाध्याय: धार्मिक ग्रंथों को पढ़ना, तापा: तपस्या” जोकि जैनों की मूलभूत रीति-रिवाज़ है.
भारत के सांस्कृतिक उत्सव में ईसाई पर्व का महत्त्व
भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा रंग-बिरंगे भारत के सांस्कृतिक उत्सव को मनाने का रिवाज है. इस कारण से भारत को विभिन्न संस्कृतियों और जातियता की भूमि के रुप में देखा जाता है. भारत में ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस, ईस्टर, गुड फ्राई-डे जैसे आदि त्योहार बहुत ही आनंद और बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं. भारत में ऐसा नहीं है कि केवल इसाई ही अपने धर्मों का आनंद उठाते हैं. यहाँ दूसरे धर्म के लोग भी ईसाईयों के पर्व का आनंद उठाते हैं. उदाहरण के तौर पर क्रिसमस को ले लीजिये भारत के लोग भारत के उत्सव और सांस्कृतिक पर्व के नाम पर क्रिसमस का भी बड़े ही आनंद पूर्वक मजा लेते हैं.
भारत में बहुत सारी प्रसिद्ध जगहे हैं जहाँ पर ईसाई धर्म के त्योहारों को मनाया जाता है. इन जगहों पर इसाई धर्म के लोग विशेष संख्या में पाए जाते हैं. जैसे गोवा जहाँ सबसे पुरानी और सुंदर चर्च मौजूद है. इसी धर्म के लोग अपने विशेष पर्व के दौरान दावत देते हैं, प्रार्थना करते हैं और अपने दोस्त और परिवार वालों के साथ जुलूस निकाला करते हैं.
बौद्ध पर्व
भारत के सांस्कृतिक उत्सव का जब ज़िक्र हो तो भला ऐसा हो सकता है क्या कि बौद्ध धर्म का ज़िक्र ना हो. बौध धर्म के लोग अपना विश्वास भगवन बुद्ध में रखते हैं. ये अपने त्योहारों को भगवान बुद्ध और बोधिसत्व से अच्छी तरह जुड़ कर मनाते हैं. इस धर्म को लेकर ऐसी मान्यता है कि बौद्ध समारोह पहली बार भगवान बुद्ध के द्वारा ही शुरु किया गया था और उन्होंने अपने भक्तों को ये सलाह दी थी कि अपने बंधन को मधुर और मजबूत करने के लिए सदैव एक-दूसरे के संपर्क में रहें. भारत के उत्सव और ऐतिहासिक सांस्कृतिक पर्व को मनाने के लिए इनके अपने रीति-रिवाज़ और विश्वास होते हैं. बौध धर्म के लोग अपने पर्व को मनाने के लिए ऐतिहासिक वस्तुओं की पूजा करते हैं.
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