भारत में शिक्षा के अधिकार को जमीन पर लाना आसान तो बिल्कुल नही था. ऐसा करने में सरकार को छह दशक से ज्यादा का समय लगा, यह कानून 1 अप्रेल 2010 को लागू हुआ, जिसे नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 का नाम दिया गया. जिसमें 6 से 14 वर्ष की आयु समुह के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा जरूरी होना हैं.
इन सभी के अलावा अगर हम भारत में शिक्षा के अधिकार को आसान भाषा में समझने की कोशिश करें, तो इसमें कोई भी स्कूल बच्चे को दाखिला देने से मना नही कर सकता हैं. हर 60 बच्चों पर कम से कम दो प्रशिक्षित अध्यापकों का होना अनिवार्य है. हर तीन किलोमीटर के अंदर स्कूल होना जरूरी हैं. राईट टू एजुकेशन पर होने वाले खर्चों का 55 प्रतिशत क्रेंद और 45 प्रतिशत राज्य सरकारों को उठाना होगा.
राईट टू एजुकेशन एक्ट की जानकारी (http://mhrd.gov.in/hi/rte-hindi )
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट से मिली एक्ट और प्रावधानों की जानकारी के मुताबिक भारत में शिक्षा के अधिकार को संविधान के (86वा संशोधन) अधिनियम, 2002 ने भारत के संविधान में अंत: स्थापित अनुच्छेद 21-क, ऐसे ढंग से जैसाकि राज्य कानून द्वारा निर्धारित करता है, मौलिक अधिकार के रूप में छह से चौदह वर्ष के आयु समूह में सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है.
भारत मे राईट टू एजुकेशन (आरटीई) अधिनियम, 2009 में बच्चों का अधिकार, जो अनुच्छेद 21क के तहत परिणामी विधान का प्रतिनिधित्व करता है का अर्थ है कि औपचारिक स्कूल(जो कतिपय अनिवार्य मानदण्डों और मानकों को पूरा करता है) में संतोषजनक और एकसमान गुणवत्ता वाली पूर्णकालिक प्रांरभिक शिक्षा के लिए प्रत्येक बच्चे का अधिकार है.
अनुच्छेद 21-क और राईट टू एजुकेशन अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ. आरटीई अधिनियम के शीर्षक में ”नि:शुल्क और अनिवार्य” शब्द सम्मिलित हैं. ‘नि:शुल्क शिक्षा’ का तात्पर्य यह है कि किसी बच्चे जिसको उसके माता-पिता द्वारा स्कूल में दाखिल किया गया है, को छोड़कर कोई बच्चा, जो उचित सरकार द्वारा समर्थित नहीं है, किसी किस्म की फीस या प्रभार या व्यय जो प्रारंभिक शिक्षा जारी रखने और पूरा करने से उसको रोके अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा.
‘अनिवार्य शिक्षा’ उचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारियों पर 6-14 साल की आयु समूह के सभी बच्चों को प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने का प्रावधान करने और सुनिश्चित करने की बाध्यता रखती है. इससे भारत अधिकार आधारित ढांचे के लिए आगे बढ़ा है जो राईट टू एजुकेशन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21-क में यथा प्रतिष्ठापित बच्चे के इस मौलिक अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों पर कानूनी बाध्यता रखता है.
राईट टू एजुकेशन अधिनियम निम्नलिखित का प्रावधान करता है :
किसी पड़ौस के स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने तक नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए बच्चों का अधिकार होना हैं.
यह स्पष्ट करता है कि ‘अनिवार्य शिक्षा’ का तात्पर्य छह से चौदह आयु समूह के प्रत्येक बच्चे को नि:शुल्क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने और अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा करने को सुनिश्चित करने के लिए उचित सरकार की बाध्यता से है. ‘नि:शुल्क’ का तात्पर्य यह है कि कोई भी बच्चा प्रारंभिक शिक्षा को जारी रखने और पूरा करने से रोकने वाली फीस या प्रभारों या व्ययों को अदा करने का उत्तरदायी नहीं होगा.
यह गैर-प्रवेश दिए गए बच्चे के लिए उचित आयु कक्षा में प्रवेश किए जाने का प्रावधान करता है.
यह नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने में उचित सकारों, स्थानीय प्राधिकारी और अभिभावकों कर्त्तव्यों और दायित्वों और केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच वित्तीय और अन्य जिम्मेदारियों को विनिर्दिष्ट करता है.
यह, अन्यों के साथ-साथ, छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर), भवन और अवसंरचना, स्कूल के कार्य दिवस, शिक्षक के कार्य के घंटों से संबंधित मानदण्डों और मानकों को निर्धारित करता है.
यह राज्य या जिले अथवा ब्लॉक के लिए केवल औसत की बजाए प्रत्येक स्कूल के लिए रखे जाने वाले छात्र और शिक्षक के विनिर्दिष्ट अनुपात को सुनिश्चित करके अध्यापकों की तैनाती के लिए प्रावधान करता है, इस प्रकार यह अध्यापकों की तैनाती में किसी शहरी-ग्रामीण संतुलन को सुनिश्चित करता है. यह दसवर्षीय जनगणना, स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधान सभा और संसद के लिए चुनाव और आपदा राहत को छोड़कर गैर-शैक्षिक कार्य के लिए अध्यापकों की तैनाती का भी निषेध करता है.
राईट टू एजुकेशन उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान करता है अर्थात अपेक्षित प्रवेश और शैक्षिक योग्यताओं के साथ अध्यापक
यह (क) शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न; (ख) बच्चों के प्रवेश के लिए अनुवीक्षण प्रक्रियाएं; (ग) प्रति व्यक्ति शुल्क; (घ) अध्यापकों द्वारा निजी ट्यूशन और (ड.) बिना मान्यता के स्कूलों को चलाना निषिद्ध करता है.
राईट टू एजुकेशन संविधान में प्रतिष्ठापित मूल्यों के अनुरूप पाठ्यक्रम के विकास के लिए प्रावधान करता है और जो बच्चे के समग्र विकास, बच्चे के ज्ञान, संभाव्यता और प्रतिभा निखारने तथा बच्चे की मित्रवत प्रणाली एवं बच्चा केन्द्रित ज्ञान की प्रणाली के माध्यम से बच्चे को डर, चोट और चिंता से मुक्त बनाने को सुनिश्चित करेगा.
इन सभी के अलावा अगर हम भारत में शिक्षा के अधिकार को आसान भाषा में समझने की कोशिश करें, तो इसमें कोई भी स्कूल बच्चे को दाखिला देने से मना नही कर सकता हैं. हर 60 बच्चों पर कम से कम दो प्रशिक्षित अध्यापकों का होना अनिवार्य है. हर तीन किलोमीटर के अंदर स्कूल होना जरूरी हैं.
नोट : भारत में शिक्षा के अधिकार एक्ट और प्रावधानों की जानकारी मानव संसाधन विकास मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई हैं.
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