यह चौकाने वाली बात अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर डेवलपमेंट की तरफ से कही गई है. जिसने कहा कि ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिग में भारत को इतना उछाल मिलना और कुछ नही महज विश्व बैंक की तरफ से गलत तरीके से हुआ सर्वे है. सिर्फ इतना ही नही अमेरिकी थिंक टैंक ने विश्व बैंक की रिपोर्ट को खारिज करते हुए इसे भ्रामक करार दिया और साथ ही इसपर सवाल भी खड़े किए है.
इन सभी के अलावा अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर ऑर डेवलपमेंट ने यह भी कहा की इस रिपोर्ट के चलते गलत प्रचार किया गया है. थिंक टैंक ने क्रांस चेकिंग करते हुए अपनी वेबसाइट पर ब्लॉग के डरिए जानकारी को प्रकाशित किया. यह पहला मामला नही था जब इस प्रकार की कोई बहस हुई हो, इससे पहले भी इस रिपोर्ट पर घमासान मच चुका है जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक स्तर पर छेड़छाड़ हुई है. जिसके चलते वर्ल्ड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री पॉल रोमर ने इस्तीफा दे दिया था और पिछले चार वर्षों की रैंकिग की फिरसे जाँच की बात कही थी.
हो सकता है बहुत से लोग सोच रहे हो कि अमेरिकी थिंकटैंक संस्था ऐसा क्या करती है, तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह संस्था वैश्विक स्तर पर असमानता और गरीबी से जुड़े मुद्दों के लिए अपने व्यापक अध्ययन के लिए जानी जाती है.
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में ऐसा क्या है जिसने सवाल खड़ा कर दिया है –
सेंटर फॉर डेवलपमेंट के अनुसार 2014 के बाद वर्ल्ड बैंक ने रैकिंग तय करने के पैरामीटर में बदलाव किए, जिसके बाद नए पैरामीटर के हिसाब से भले ही भारत की रैकिंग अच्छी दिखती है, मगर हकीकत इससे उलट है. संस्था ने आरोप लगाया कि विश्व बैंक ने अपनी वेबसाइट पर भ्रामक हेडिंग लगाकर संबंधित रिपोर्ट प्रकाशित की, जिससे ईज ऑफ डूइंग में भारत की नकली रैंकिग का जमकर प्रचार किया गया.
जब रिपोर्ट पर विवाद हुआ तो वर्ल्ड बैंक की ओर से सफाई देने की कोशिश हुई, मगर ऐसी सभी रिपोर्ट पर वो हेडलाइऩ भारी पड़ी, जिसमें सर्वें के तरीके पर सवाल हुए थे. जनसत्ता डॉट कॉम पर प्रकाशित खबर के मुताबिक, सेंटर फार ग्लोबल डेवलपमेंट ने वर्ल्ड बैंक की प्रणाली में परिवर्तन से भारत की रैकिंग में हुए फर्क के बाबत कहा, ‘भारत ने पुरानी पद्धति से 2014 में 81.25 और नई पद्धति से 65 अंक अर्जित किया. इस नाते हमने हर वर्ष 1.25 (= 81.25 / 65) के हिसाब से गुणा करके रैकिंग निकाली. कंसिस्टेंट मेथेडोलॉजी एंड फिक्स्ड सैंपल ऑफ कंट्रीज के तरीके से जब जांच हुई तो पता चला कि भारत की रैकिंग में 2017 से 2018 के मुकाबले सिर्फ सात अंक का उछाल आया है. यानी भारत 141 से 134 पर पहुंचा है. जबकि विश्व बैंक ने आधिकारिक रूप से भारत की रैकिंग 130 से 100 पर पहुंचनी दिखाई है.’
क्या थी विश्व बैंक की रिपोर्ट –
अगर पिछले बीते वर्ष की बात करें तो अक्टूबर 2017 में वर्ल्ड बैंक ने भारत को 100 रैकिंग दी थी. सालाना रिपोर्ट ‘डूइंग बिजनेस 2018: रिफार्मिंग टू क्रिएट जॉब्स’ में विश्व बैंक ने कहा था कि भारत की रैंकिंग 2003 से अपनाए गए 37 सुधारों में से करीब आधे का पिछले चार साल में किए गए क्रियान्वयन को प्रतिबिंबित करता है. कारोबार सुगमता के 10 संकेतकों में से आठ में सुधारों को क्रियान्वित किया गया. इसको लेकर भारत को पहली बार शीर्ष 100 देशों में जगह मिली. जबकि 2017 में भारत को 190 देशों की सूची में 130 वें स्थान पर रखा था. 100 वीं रैंक मिलने के बाद मोदी सरकार ने इसको लेकर काफी प्रचार भी किया. हाल में दावोस के दौरे के दौरान भी मोदी ने विश्व बैंक की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि धरती का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है.
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