कवि, पत्रकार, समाजसेवी और भारतीय राजनीति के प्रणेता भारत रत्न पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी के निधन पर देश में शोक की लहर दौड़ गई है. वे राजनीति के ऐसे धुरंधर थे जिनकी विचारधारा को सीखकर कई राजनैतिक देश की सत्ता के शिखर पर पहुँच गए.अटल जी की राजनैतिक प्रणाली वर्तमान राजनैतिक परिवेश से बिल्कुल अलग थी.
वे अपने विरोधियों में भी खासे लोकप्रिय थे. जोड़-तोड़ की राजनीति के विरोधी थे बाजपेयी . एक कवि के रूप में अटल जी द्वारा लिखी गई कवितायेँ सदियों तक जनमानस के लिए प्रेरणाश्रोत रहेंगी. कल देर शाम दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में उनका निधन हो गया. उनके निधन से देश में राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है. यूपी सरकार ने अटल जी के निधन पर 7 दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया है. इसके साथ ही देश के कई राज्यों ने उनके निधन पर राजकीय शोक का ऐलान किया है. उनका पार्थिव शरीर उनके दिल्ली निवास 6A कृष्णा मेनन मार्ग पर आम जनता के दर्शनों के लिए रखा गया है. आज शाम 4 बजे उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा.
- अटल जी का जीवन परिचय
अटल बिहारी बाजपेयी का परिवार मूलतः यूपी के आगरा से था। उनके पिता पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे. वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसम्बर 1924 को ब्रह्म मुहूर्त में उनकी सहधर्मिणी कृष्णा वाजपेयी की कोख से अटल जी का जन्म हुआ था.
कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में शिक्षण कार्य तो करते ही थे इसके अलावा वे हिन्दी व ब्रज भाषा के मशहूर कवि भी थे। अटल जी में कवि का ही खून दौड़ रहा था. महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित अमर कृति “विजय पताका” पढकर अटल जी के जीवन की दिशा बदल गयी. अटल जी की बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज में पूरी हुई थी. छात्र जीवन से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे.
कानपुर के डी०ए०वी० कालेज से राजनीति शास्त्र में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था. अटल जी आजीवन अविवाहित रहे. हालांकि एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि वे अविवाहित जरूर लेकिन कुंवारे नही. जब वे पीएम बने तो अपने बचपन की दोस्त राजकुमारी कौल और उनकी बेटी को भी पीएम हाउस में साथ ही रखा गया था. राजकुमारी कौल उनकी सहपाठी थी.
उनकी बेटी को अटल जी ने दत्तक पुत्री बनाया था और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा बताते हुए अपनी एक किताब में जिक्र भी किया था. उनके अंतिम संस्कार में मुखाग्नि उनकी दत्तक पुत्री दे सकती है या फिर उनके भाई के बेटे दीपक बाजपेयी भी दे सकते हैं मुखाग्नि.
एक कुशल पत्रकार अटल बिहारी बाजपेयी
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाने वाली पत्रकरिता कोई पेशा नही होती. यह देश को जागरूक करने के जज्बे का एक समूह होता है जो बिना किसी स्वार्थ के सरकार की नाकामियों और उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने का काम करता है. हालांकि वह दौर अब नही रहा. अटल जी ने पत्रकारिता का ककहरा धर्म नगरी बनारस से सीखा था. उन्होंने ‘समाचार’ नामक पत्र में लिखना शुरू किया था. इस पत्र की शुरुआत साल 1942 में की गई थी. इस के अलावा उन्होंने पान्चजन्य जैसी कई पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया.
अटल जी का राजनैतिक सफ़र
राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना के समय अटल जी भी उसके कार्यकारी सदस्य थे. साल 1968 से लेकर 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे. साल 1955 में लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा लेकिन साल 1957 में उन्होंने यूपी के बलरामपुर से चुनाव जीता और लोकसभा के सदस्य बन गए. 1957 से 1977 तक अटल जी ने जनसंघ के संसदीय समिति के अध्यक्ष के रूप में काम किया. मोरारजी की सरकार में विदेश मंत्री भी रहे.
साल 1980 में जनता दल के बिखराव के समय अटल जी के सहयोग से बीजेपी का निर्माण हुआ. वे इस संगठन के पहले अध्यक्ष भी चुने गए. साल 1997 में अटल जी पहली बार देश के प्रधानमन्त्री चुने गए. साल 1999 से साल 2004 तक पांच वर्ष देश के प्रधानमंत्री रहे. इस बीच कारगिल जैसी लड़ाइयों को फ़तेह करने का श्रेय भी अटल जी को ही जाता है
पोखरण विस्फोट के समय अमेरिका ने भारत पर प्रतिबन्ध लगाने की धमकी दी थी. उस समय अटल जी अटल बने रहे और हस्ताक्षर करने से मना कर दिया. इसके बाद उन्होंने सफलता से पोखरण विस्फोट कर देश को शक्तिशाली बना दिया. अटल जी संसद में सभी को साथ लेकर चलने की बात करते थे. वे तोड़ फोड़ की राजनीति में भरोसा नही करते थे. वे लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चलाने के पक्षधर थे. उनके कई वक्तव्य ऐसे थे जिसे देश हमेशा याद रखेगा.
साल 1992 में अटल जी को पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया. साल 20 15 में मोदी सरकार आने के बाद उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाज़ा गया जिसके वे पात्र भी थे.
कल रात 9.30 बजे से अटल जी के निवास स्थान पर लोगों ने उनके पार्थिव शरीर का आखिरी दर्शन किया. आज सुबह उनके निवास स्थान पर आखिरी दर्शन करने वालों की भीड़ लगी थी. उनके पार्थिव शरीर को उनके निवास से सुबह 8.15 बजे रवाना किया गया जो कृष्णा मेनन मार्ग से होते हुए 10 बजे बीजेपी मुख्यालय पहुंचा. इस दौरान कृष्णा मेनन मार्ग से अकबर रोड, अकबर रोड से होते हुए इंडिया गेट, इंडिया गेट से तिलक मार्ग, तिलक मार्ग से आईटीओ होते हुए दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित बीजेपी मुख्यालय तक उनकी अंतिम यात्रा निकाली जाएगी.
बीजेपी मुख्यालय से अटल जी की अंतिम यात्रा दोपहर 1 बजे शुरू होगी और 4 बजे स्मृति स्थल पहुंचेगी. 4 बजे राष्ट्रीय समिति स्थल पर वे पंचतत्व में विलीन कर दिए जाएगे।
कवि के रूप में अटल जी का संक्षिप्त परिचय
देश में राजनेता तो हज़ारों हैं लेकिन अटल जी जैसे कवि और राजनेता बहुत ही बिरले पैदा होते हैं. आज वे हम सब के बीच नही रहे लेकिन उनके आदर्श आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाते रहेंगे. उनकी रचनाएं श्रृंगार और बीर रस से ओतप्रोत होती थी. अटल जी की एक कविता जो मन को छू जाती है.
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
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